शुक्रवार, अक्तूबर 30, 2009

आग बुझा नही पा रहे चलें हैं सुपर पॉवर बनने


भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी तनाव पैदा होता है तो टेलिविज़न पर आने वाले रक्षा विशेषज्ञ यही कहते है की हमारे पास पाकिस्तान के मुकाबले बहुत ताक़त है अगर हमारा पाकिस्तान से झगडा हो गया तो उसे पूरी तरह से हमें एक महीना से ज्यादह नही लगेगा। हमारा देश भारत कितना मज़बूत है और भगवान् न करे हम पर कोई बड़ी कठिनाई आती है तो हम इस से निबटने के लिए कितने सक्षम हैं इसका अंदाजा हमें जयपुर के पास इंडियन आयल के डिपो में लगी खतरनाक आग के बाद हो गया जिसे कई घंटे बीतने के बाद भी बुझाया नही जा सका। अब प्रश्न यह उठता है की सुपर पॉवर बनने का खवाब देखने वाले हिंदुस्तान के पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जिसकी सहायता से ऐसी आग पर काबू पाया जा सके।
दिल्ली , मुंबई, और मथुरा से माहिर बुलाये गए मगर सब के सब इस आग को बुझाने में लाचार साबित हुए। पेट्रोलियम मिनिस्टर , जयपुर के चीफ फाएर ऑफिसर और मथुरा के जो भी माहिर गए सब ने अपने हाथ खड़े कर दिए और यही कहा की इस आग पर काबू पाना हमारे बस का नहीं है। हम तो उस समय का इंतजार कर रहे हैं जब टैंक का पेट्रोल ख़ुद समाप्त हो जाएगा और फिर आग ख़त्म हो जायेगी। डिपो में लगी इस आग से लगभग २० लोग मारे गए , अरबों रूपये का नुकसान हुआ और हजारों लोगों को अपना घर बार छोड़ कर भागना पड़ा। मगर यह सब उतना अफसोसनाक नहीं है जितना अफ़सोसनाक यह है की हमारे पास ऐसे सिस्टम की कमी है जो इस तरह की मुसीबत आने पर इसका हल निकाल सके।
सच्चाई यह है की हमारे देश में किसी को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास नहीं है। जयपुर में सिस्टम की खामी देखिये की जब मथुरा से गए सी आई एस ऍफ़ के लोग एक ख़ास केमिकल ले कर वहां पहुंचे तो उन्हें अपनी करवाई शुरू करने में इस लिए देर लगी क्योंकि उन्हें इस के लिए पानी की आवशयकता थी मगर उन्हें चार पाँच घंटे तक पानी नहीं मिला। वैसे बाद में इस टीम ने भी कह दिया की इस खतरनाक आग पर काबू पाना उनके बस का नहीं है। अब यह बात संजीदगी से सोचने की है की क्या इस नाकामी के बाद हम यह कहने की पोजीशन में हैं की हम ने काफ़ी तरक्की कर ली है और हम कई मुल्कों से टक्कर लेने की पोजीशन में हैं और यह की जल्द ही हम भी सुपर पॉवर बन जायेंगे। जहाँ तक मेरी समझ है जो देश ऐसी आग को बुझाने की सलाहियत नहीं रखता हो उसे ख़ुद को विकास शील देश कहने का हक भी नही है।

गुरुवार, अक्तूबर 22, 2009

कमाल खान का कमाल


अब तक जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक अंततः देशद्रोही से मश्हूर हुए कमाल खान को गाली बोलने और घर वालों के साथ मारपीट करने पर बिग बॉस ने अपने घर से निकाल दिया। यह तो पहले दिन ही तै हो गया था की बिग बॉस के घर में रहने वाले बाकी लोग कमाल को पसंद नहीं करते हैं। मगर सच्चाई यह है की चैनल वाले और वह सब लोग जो इस प्रोग्राम को देखते हैं वह सब कमाल को ही पसंद करते थे और उनकी वजह से ही लोग मज़े भी ले रहे थे और चैनल की टी आर पी बढ़ गई थी।
यह सही है की कमाल ने कुछ ज्यादह ही बदतमीजी कर दी मगर सच्चाई यह है की इस तरह के प्रोग्राम में ऐसा ही होना चाहिए और यही हर कोई चाहता है। यदि कमाल की बात को छोड़ दें तो कौन सा मेहमान उस घर का शरीफ है। हर कोई एक दूसरे को गली दे रहा है और हर कोई एक दूसरे की बुरे कर रहा है। औरतों जैसी हरकत करने वाले रोहित वर्मा भी बिल्कुल औरतों की तरह ही जब देखो किसी न किसी की बुराई कर रहे हैं। अब जबकि कमाल खान इस घर से निकाले जा चुके है तो क्या अब वहां हंगामा नही होगा । और अगर हंगामा नहीं होगा तो फिर कौन इतना बेवकूफ है जो एक शराफत वाले प्रोग्राम को अपना कीमती वक्त ख़राब का के देखेगा ।
सही बात यह है की इस तरह के प्रोग्राम का आना ही ग़लत है। अंत में जीत जिसकी भी हो मगर इस दौरान कई लोगों में झगडा तो हो ही जाता है। घर में कमाल के बारे सब जैसी बातें कर रहे थे उस से तो यही लगता है की उन में से बिन्दु को छोड़ कर अब किसी से भी उसके रिश्ते बेहतर नही हो सकते। दुनिया भर में लोगों को हंसाने वाले राजू श्रीवास्तव जैसा शरीफ व्यक्ति भी कमाल से झगड़ गया और सब ने देखा की कमाल ने ज्यादह बदतमीजी की मगर गाली राजू ने भी दी। क्या अब कभी राजू और कमाल के रिश्ते बेहतर हो सकते हैं। मेरे हिसाब से तो ऐसा कभी नहीं हो सकता ।
कुल मिलाकर अगर आप भारत में ऐसा प्रोग्राम देखना चाहते है तो आप को बिग बॉस के घर में गली गलोज देखने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। बल्कि जनता तो गली गलोज ही देखना चाहती है और अगर ऐसा नहीं है तो फिर देख लेंगे की बिना मर पीट और गली गलोज के यह प्रोग्राम कैसे सफल होता है। कई लोगों ने कहा है की कमाल जो कर रहे थे वह ज्यादह हो गया मगर ऐसी हरकतें ही इस तरह के प्रोग्रामों को सफल बनाती हैं।

मंगलवार, अक्तूबर 20, 2009

सिब्बल साहब का यह फ़ैसला उचित नहीं

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने आई आई टी में कई तब्दीलियाँ करने की तरफ़ इशारा दिया है। उनकी कौन सी बात मणि जायेगी और कौन सी नहीं यह तो अलग सवाल है मगर उनका यह सुझाव किसी भी तरह से मानने के काबिल नहीं है की आई आई टी की प्रवेश परीक्षा में वही छात्र बैठ सकते हैं जिन्हों ने बारहवीं में ८० प्रतिशत नम्बर हासिल किए हों। इतने ज्यादह नम्बर सी बी एस ई के लड़के ही लाते हैं और दूसरे बोर्ड में इतने अधिक नम्बर लाना आसन नहीं है। वैसे तो इस फैसले को लागू नहीं होना चाहिए मगर अगर ऐसा हो जाता है तो सबसे ज्यादह नुकसान बिहार के स्टुडेंट का होगा। मैं ऐसे एक दो नही बल्कि कई स्टुडेंट को जानता हूँ जिन्हों ने मेट्रिक या बारहवीं में कोई बहुत अच्छा नहीं किया है मगर बाद में मेहनत करके वोह आई आई टी में सफल हुए। इसका मतलब यह हुआ की यह कोई ज़रूरी नही है की कोई लड़का यदि शुरू के दिनों में बेहतर नही है तो वोह बाद में भी अच्छा नही करेगा। सिबाल साहब अपने इस सुझाव को वापस ले लें तो बेहतर कोगा।

शनिवार, अक्तूबर 10, 2009

ओबामा को नोबेल


अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को शान्ति का नोबेल पुरस्कार देने का इलान किया गया है। दुनिया के और दूसरे पुरस्कारों की तरह अब नोबेल के बारे में भी ऐसा कहा जाने लगा है की अब इस पुरस्कार की भी कोई बहुत ज्यादह अहमियत नही रह गई है। ओबामा ही नही इस से पहले भी नोबेल इनाम खास तौर पर शान्ति का नोबेल ऐसे कई लोगों को मिल चुका है जिन्हों ने दुनिया में शान्ति फैलाने के बजाये फसाद फैलाया। जहाँ तक ओबामा का सवाल है तो सिर्फ़ अल काएदा या सिर्फ़ तालिबान वाले ही ओबामा को पुरस्कार देने को ग़लत नहीं मान रहे हैं बल्कि दुनिया में लाखों ऐसे लोग है हैं जिनकी नज़र में ओबाम अफगानिस्तान या फिर इराक में जो कर रहे हैं वोह सही नही है। दुनिया में अमेरिका की वजह से शान्ति है या फसाद इस से हर कोई अवगत है । ऐसा नही है की तालिबान या अल काएदा के लोग जो कर रहे हैं वोह सही है मगर ओबामा और उनके लोग जो कर रहें हैं वोह भी सही नही है। ओबामा ने अब तक जो किया है उसे देख कर ऐसा नही लगता की वोह इस इनाम के हकदार थे।