गुरुवार, दिसंबर 17, 2009

धंधा है पर गन्दा है.

गत दिनों सुप्रीम कोर्ट की एक ऐसी दलील आई जिसे भारतीय समाज में आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि दुनिया के सब से पुराने धंधे वैश्यावृति पर अगर कानून बनाकर या फिर किसी और तरीके से रोक लगाना मुमकिन नहीं हो रहा है तो फिर इसे कानूनी दर्जा ही क्यों न दे दिया जाये। कोर्ट कि यह टिपण्णी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि हर तरह कि कोशिश के बावजूद इस बुराई पर काबू नहीं पाया जा सका है। अलबत्ता इस के अंदाज़ में भी तब्दीली आ गयी है। कुछ साल पहले तक यह गन्दा धंधा चोरी छुपे होता था मगर अब यह खुले आम हो रहा है। पहले दलाल लोगों को वेश्या के पास लाते थे अब बिंदास टाइप कि लड़कियां काल गर्ल का काम कर रही है और इस धंधे में वोह किसी दलाल के चक्कर में पड़ने के बजाये खुद ही अपना नंबर बाँट रही हैं और घंटों में लाखों पैसा कमा रही हैं। जी हाँ अंग्रेज़ी अखबार में मसाज सेण्टर के नाम पर जो विज्ञापन छपता है वोह असल में काल गर्ल का ही नंबर होता है। इन में कुछ तो दलाल के नंबर होते हैं और कुछ पर आप सीधा काल गर्ल से ही बात कर सकते हैं। इन काल गर्ल के चार्ज अलग अलग होते हैं। इन से होटल में संपर्क करें तो उसका चार्ज अलग होगा इन्हें आप जहाँ चाहें ले जायें उसका चार्ज अलग होगा। ऐसी लड़कियां भी हैं जो एक साथ कई लोगों के साथ जाने को तैयार हैं बस आपको उसका रेट देना होगा। कुल मिला कर दुनिया के दुसरे देशों कि तरह भारत में भी वैश्यावृति किसी न किसी शक्ल में मौजूद है।
अब सवाल यह है कि क्या यदि यह बुराई बड़े पैमाने पर हो रही है और इस पर रोक भी नहीं लग पा रहा है तो क्या इसे जायज़ करार दिया जाना उचित होगा। भारत जैसे देश में इसका सीधा सा जवाब यह है कि इस बुराई को किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठाहराया जा सकता। इस से इनकार नहीं किया जा सकता कि बुराई भारत के छोटे बड़े हर शहर में मौजूद है। ग़रीब से ग़रीब और अमीर से अमीर लड़कियां इस बुराई में लिप्त हैं। मगर इस का मतलब यह नहीं है कि यदि बुराई बड़े पैमाने पर हो रही है तो उसे बुराई नहीं मन जाये। यदि इस बुराई को जायज़ ठाहराया जाता है तो इस का समाज पर बहुत बुडा असर पड़ेगा। जो वैश्याएँ या काल गर्ल आज कुछ हद तक शर्माती हैं वह फिर खुलेआम अपने ग्राहक से बदतमीजी करती नज़र आयेंगे। कुल मिलकर वैश्यावृति चाहे कितनी ही पुरानी तिजारत क्यों न हो यह एक बहुत बड़ी बुराई है और इसे भारतीय समाज में उचित नहीं ठाहराया जा सकता।

गुरुवार, नवंबर 26, 2009

अल्लाह करे ऐसा फिर कभी न हो


मुंबई में पर हुए आतंकवादी हमलों को एक साल बीत चुके हैं। इस अवसर पर आज हमें उन सभों के साथ होना चाहिए जिनके रिश्तेदार इस में मारे गए। इस आतंकवादी हमले में जिस किसी का भी हाथ था उसे जितनी भी सज़ा दी जाए कम होगी। आखिर इस तरह की दहशतगर्दी फैलाने वाले यह क्यों नहीं समझते कि उन्हों ने मासूम लोगों कि जान ले कर बहुत बुरा किया है। समझ में नहीं आता कि ऐसे लोग बेगुनाहों को मार कर आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं। दुनिया का कोई भी धर्म बेगुनाहों कि जान लेने से मना करता है। जहाँ तक इस्लाम धर्म का सवाल है तो उसने तो एक व्यक्ति हत्या को पूरी मानवता कि हत्या बतलाया है। फिर तो एक सच्चा मुसलमान इस प्रकार कि गन्दी हरकत कर ही नहीं सकता।
जो लोग इस हमले में शामिल थे उसमें से अकेले अजमल कसाब ही बचा है। जो मर गए उन्हें ऐसा करके आखिर क्या मिला। अजमल कसाब भी किसी तरह बच नहीं सकता। तो फिर उसने ऐसा क्यों क्या। पता नहीं ऐसे लोग आख़िर क्या हासिल करना चाहते हैं। इस तरह कि हरकत जो भी कर रहा है उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। हर किसी को इस पारकर के हरकतों कि निंदा करनी चाहिए यदि कोई ऐसा नहीं करता है तो उसे बस इतना समझना चाहिए आज इस हमले में किसी का बेटा, किसी का शौहर, और किसी का बाप मारा है कल ऐसा किसी उसके अपने के साथ भी हो सकता है। हम तो बस खुदा से यही दुआ करते हैं कि इस हमले में जो लोग मारे गए हैं खुदा उनके घर वालों को सब्र दे और ऐसा हमला न केवल हिन्दुस्तान में बल्कि दुनिया के किसी भी हिस्से में नहीं हो और इस तरह बेक़सूरों कि जान न जाए।

सोमवार, नवंबर 09, 2009

विधान सभा में राज ठाकरे एंड कंपनी की गुंडा गर्दी

महाराष्ट्र विधान सभा में अबू आसिम आज़मी के शपथ लेने के समय राज ठाकरे उनके निर्वाचित गुंडों ने जो कुछ भी किया उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम हैआए दिन किसी किसी बात को बहाना बनाकर राज के गुंडे तो पहले भी लोगों के साथ मार पीट करते रहे हैं मगर इस बार तो उनहोंने हद ही कर दीहिन्दी में शपथ लेकर अबू आसिम आज़मी देशभक्ति का एक बेहतरीन नमूना पेश कर रहे थे मगर राज के गुंडों को देश की भाषा का महत्व ही नहीं मालूम इसलिए उन्हों ने आज़मी के साथ सदन के अन्दर ही बदतमीजी की
राज और उनके गुंडों की हिम्मत आज इसलिए बढ़ गई है की उन्हों ने पहले जब भी हंगामा किया , बड़े बड़े लोगों के साथ बदतमीजी की तो उन के विरूद्व करवाई नहीं हुईनॉर्थ इंडिया खास तौर पर बिहार के लोगों के साथ राज के गुंडे आए दिन मार पीट करते रहते हैं मगर कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकाराज और उनके लोग नंगे होकर सड़कों पर नाचते रहे और उन लोगों के ख़िलाफ़ कोई कारवाई नहीं हुई। सरकार और पुलिस की लापरवाही की वजह से ही आज राज के लोगों ने सदन में ही ऐसी हरकत कर दी की सारे देश की आँखें शर्म से झुक गयीं।
फिलहाल सदन में बदतमीजी करने वालों के खिलाफ करवाई हुई है मगर इन के अलावा राज ठाकरे के खिलाफ भी सख्त करवाई होनी चाहिए। ताज्जुब की बात यह है की जिस हरकत को सारा देश बुरा कह रहा है राज और उनके लोग हमेशा वही हरकत करते हैं। अगर राज ठाकरे पर लगाम नही लगाया गया तो आने वाले दिनों में वह और उनके लोग और भी अधिक खतरनाक हो जायेंगे और फिर इस की प्रतिकिर्या में पूरे देश में जो होगा उस पर काबू पाना आसन नहीं होगा।

शुक्रवार, अक्तूबर 30, 2009

आग बुझा नही पा रहे चलें हैं सुपर पॉवर बनने


भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी तनाव पैदा होता है तो टेलिविज़न पर आने वाले रक्षा विशेषज्ञ यही कहते है की हमारे पास पाकिस्तान के मुकाबले बहुत ताक़त है अगर हमारा पाकिस्तान से झगडा हो गया तो उसे पूरी तरह से हमें एक महीना से ज्यादह नही लगेगा। हमारा देश भारत कितना मज़बूत है और भगवान् न करे हम पर कोई बड़ी कठिनाई आती है तो हम इस से निबटने के लिए कितने सक्षम हैं इसका अंदाजा हमें जयपुर के पास इंडियन आयल के डिपो में लगी खतरनाक आग के बाद हो गया जिसे कई घंटे बीतने के बाद भी बुझाया नही जा सका। अब प्रश्न यह उठता है की सुपर पॉवर बनने का खवाब देखने वाले हिंदुस्तान के पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जिसकी सहायता से ऐसी आग पर काबू पाया जा सके।
दिल्ली , मुंबई, और मथुरा से माहिर बुलाये गए मगर सब के सब इस आग को बुझाने में लाचार साबित हुए। पेट्रोलियम मिनिस्टर , जयपुर के चीफ फाएर ऑफिसर और मथुरा के जो भी माहिर गए सब ने अपने हाथ खड़े कर दिए और यही कहा की इस आग पर काबू पाना हमारे बस का नहीं है। हम तो उस समय का इंतजार कर रहे हैं जब टैंक का पेट्रोल ख़ुद समाप्त हो जाएगा और फिर आग ख़त्म हो जायेगी। डिपो में लगी इस आग से लगभग २० लोग मारे गए , अरबों रूपये का नुकसान हुआ और हजारों लोगों को अपना घर बार छोड़ कर भागना पड़ा। मगर यह सब उतना अफसोसनाक नहीं है जितना अफ़सोसनाक यह है की हमारे पास ऐसे सिस्टम की कमी है जो इस तरह की मुसीबत आने पर इसका हल निकाल सके।
सच्चाई यह है की हमारे देश में किसी को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास नहीं है। जयपुर में सिस्टम की खामी देखिये की जब मथुरा से गए सी आई एस ऍफ़ के लोग एक ख़ास केमिकल ले कर वहां पहुंचे तो उन्हें अपनी करवाई शुरू करने में इस लिए देर लगी क्योंकि उन्हें इस के लिए पानी की आवशयकता थी मगर उन्हें चार पाँच घंटे तक पानी नहीं मिला। वैसे बाद में इस टीम ने भी कह दिया की इस खतरनाक आग पर काबू पाना उनके बस का नहीं है। अब यह बात संजीदगी से सोचने की है की क्या इस नाकामी के बाद हम यह कहने की पोजीशन में हैं की हम ने काफ़ी तरक्की कर ली है और हम कई मुल्कों से टक्कर लेने की पोजीशन में हैं और यह की जल्द ही हम भी सुपर पॉवर बन जायेंगे। जहाँ तक मेरी समझ है जो देश ऐसी आग को बुझाने की सलाहियत नहीं रखता हो उसे ख़ुद को विकास शील देश कहने का हक भी नही है।

गुरुवार, अक्तूबर 22, 2009

कमाल खान का कमाल


अब तक जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक अंततः देशद्रोही से मश्हूर हुए कमाल खान को गाली बोलने और घर वालों के साथ मारपीट करने पर बिग बॉस ने अपने घर से निकाल दिया। यह तो पहले दिन ही तै हो गया था की बिग बॉस के घर में रहने वाले बाकी लोग कमाल को पसंद नहीं करते हैं। मगर सच्चाई यह है की चैनल वाले और वह सब लोग जो इस प्रोग्राम को देखते हैं वह सब कमाल को ही पसंद करते थे और उनकी वजह से ही लोग मज़े भी ले रहे थे और चैनल की टी आर पी बढ़ गई थी।
यह सही है की कमाल ने कुछ ज्यादह ही बदतमीजी कर दी मगर सच्चाई यह है की इस तरह के प्रोग्राम में ऐसा ही होना चाहिए और यही हर कोई चाहता है। यदि कमाल की बात को छोड़ दें तो कौन सा मेहमान उस घर का शरीफ है। हर कोई एक दूसरे को गली दे रहा है और हर कोई एक दूसरे की बुरे कर रहा है। औरतों जैसी हरकत करने वाले रोहित वर्मा भी बिल्कुल औरतों की तरह ही जब देखो किसी न किसी की बुराई कर रहे हैं। अब जबकि कमाल खान इस घर से निकाले जा चुके है तो क्या अब वहां हंगामा नही होगा । और अगर हंगामा नहीं होगा तो फिर कौन इतना बेवकूफ है जो एक शराफत वाले प्रोग्राम को अपना कीमती वक्त ख़राब का के देखेगा ।
सही बात यह है की इस तरह के प्रोग्राम का आना ही ग़लत है। अंत में जीत जिसकी भी हो मगर इस दौरान कई लोगों में झगडा तो हो ही जाता है। घर में कमाल के बारे सब जैसी बातें कर रहे थे उस से तो यही लगता है की उन में से बिन्दु को छोड़ कर अब किसी से भी उसके रिश्ते बेहतर नही हो सकते। दुनिया भर में लोगों को हंसाने वाले राजू श्रीवास्तव जैसा शरीफ व्यक्ति भी कमाल से झगड़ गया और सब ने देखा की कमाल ने ज्यादह बदतमीजी की मगर गाली राजू ने भी दी। क्या अब कभी राजू और कमाल के रिश्ते बेहतर हो सकते हैं। मेरे हिसाब से तो ऐसा कभी नहीं हो सकता ।
कुल मिलाकर अगर आप भारत में ऐसा प्रोग्राम देखना चाहते है तो आप को बिग बॉस के घर में गली गलोज देखने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। बल्कि जनता तो गली गलोज ही देखना चाहती है और अगर ऐसा नहीं है तो फिर देख लेंगे की बिना मर पीट और गली गलोज के यह प्रोग्राम कैसे सफल होता है। कई लोगों ने कहा है की कमाल जो कर रहे थे वह ज्यादह हो गया मगर ऐसी हरकतें ही इस तरह के प्रोग्रामों को सफल बनाती हैं।

मंगलवार, अक्तूबर 20, 2009

सिब्बल साहब का यह फ़ैसला उचित नहीं

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने आई आई टी में कई तब्दीलियाँ करने की तरफ़ इशारा दिया है। उनकी कौन सी बात मणि जायेगी और कौन सी नहीं यह तो अलग सवाल है मगर उनका यह सुझाव किसी भी तरह से मानने के काबिल नहीं है की आई आई टी की प्रवेश परीक्षा में वही छात्र बैठ सकते हैं जिन्हों ने बारहवीं में ८० प्रतिशत नम्बर हासिल किए हों। इतने ज्यादह नम्बर सी बी एस ई के लड़के ही लाते हैं और दूसरे बोर्ड में इतने अधिक नम्बर लाना आसन नहीं है। वैसे तो इस फैसले को लागू नहीं होना चाहिए मगर अगर ऐसा हो जाता है तो सबसे ज्यादह नुकसान बिहार के स्टुडेंट का होगा। मैं ऐसे एक दो नही बल्कि कई स्टुडेंट को जानता हूँ जिन्हों ने मेट्रिक या बारहवीं में कोई बहुत अच्छा नहीं किया है मगर बाद में मेहनत करके वोह आई आई टी में सफल हुए। इसका मतलब यह हुआ की यह कोई ज़रूरी नही है की कोई लड़का यदि शुरू के दिनों में बेहतर नही है तो वोह बाद में भी अच्छा नही करेगा। सिबाल साहब अपने इस सुझाव को वापस ले लें तो बेहतर कोगा।

शनिवार, अक्तूबर 10, 2009

ओबामा को नोबेल


अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को शान्ति का नोबेल पुरस्कार देने का इलान किया गया है। दुनिया के और दूसरे पुरस्कारों की तरह अब नोबेल के बारे में भी ऐसा कहा जाने लगा है की अब इस पुरस्कार की भी कोई बहुत ज्यादह अहमियत नही रह गई है। ओबामा ही नही इस से पहले भी नोबेल इनाम खास तौर पर शान्ति का नोबेल ऐसे कई लोगों को मिल चुका है जिन्हों ने दुनिया में शान्ति फैलाने के बजाये फसाद फैलाया। जहाँ तक ओबामा का सवाल है तो सिर्फ़ अल काएदा या सिर्फ़ तालिबान वाले ही ओबामा को पुरस्कार देने को ग़लत नहीं मान रहे हैं बल्कि दुनिया में लाखों ऐसे लोग है हैं जिनकी नज़र में ओबाम अफगानिस्तान या फिर इराक में जो कर रहे हैं वोह सही नही है। दुनिया में अमेरिका की वजह से शान्ति है या फसाद इस से हर कोई अवगत है । ऐसा नही है की तालिबान या अल काएदा के लोग जो कर रहे हैं वोह सही है मगर ओबामा और उनके लोग जो कर रहें हैं वोह भी सही नही है। ओबामा ने अब तक जो किया है उसे देख कर ऐसा नही लगता की वोह इस इनाम के हकदार थे।

मंगलवार, सितंबर 22, 2009

शाबाश पुण्य प्रसून वाजपेयी


आम तौर मुसलमाओं में यह सोच पाई जाती है की मीडिया में उनकी सही तस्वीर पेश नही की जाती । ऐसा कुछ हद तक सही भी है मगर इस बात से इंकार नही क्या ज सकता की आज भी कई अख़बार , कई चैनल और पत्रकार ऐसे हैं जो किसी भी हालत में सच का दामन हाथ से नहीं छोड़ते हैं। ऐसे ही पत्रकारों में से एक है टेलिविज़न की दुनिया के जाने माने पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी। गत दिनों उन्हों ने स्वर्गीय इशरत जहाँ से यह कहते हुए माफ़ी मांगी की हमने इशरत से सम्बंधित उसकी हत्या के समय जो ख़बर चलायी थी वोह ग़लत थी। काश ऐसी सोच हर पत्रकार की होती। आज सच्चाई यह है की देश में ज्यादह तर पत्रकार बेईमान हैं। दूसरी ख़बरों के साथ तो वोह बेईमानी करते ही हैं मुसलमानों से सम्बंधित ख़बरों में तो बेईमानी से काम लिया ही जाता है । प्यारे देश भारत में जब भी कोई धमाका होता है बिना किसी जाँच के तुंरत यह ख़बर चला दी जाती है की इसके लिए मुस्लमान जिम्मेदार हैं। कोई यह जानने की कोशिश नहीं करता की पहले सच जान लें फिर खबर चलायी जाए।

देर से ही सही मगर अब वाजपेयी ने अपनी ग़लती मान कर इतना बड़ा काम किया है की उनकी जितनी भी तारीफ की जाई कम है। आज पत्रकार बड़ी बेशर्मी से सिर्फ़ पुलिस और दूसरी अजेंसिओं की बात मान कर झूट को सच साबित करने में लगे रहते हैं। जहाँ तक फर्जी एनकाउंटर का सवाल है तो यह बात अब साबित हो चुकी है की भारत में ज्यादह तर एनकाउंटर फर्जी होते हैं। एनकाउंटर में यदि कोई मुसलमान मारा जाए तब तो ऐसे एनकाउंटर पर और भी शक होता है।

मेरा बस इतना कहना है की हो सकता है कुछ धमाकों में मुसलामानों का भी हाथ हो मगर हर धमाके के बाद बिना किसी सबूत के मुसलामानों को बदनाम कर देना उचित नही है। इस बात का अहसास पत्रकार बंधुओं को भी होना चाहिए। यदि पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसी सोच हर पत्रकार की हो जाए तो फिर इस देश में कोई भी बेगुनाह मारा नही जाएगा और अगर मारा भी गया तो उसके कातिलों को सज़ा ज़रूर मिलेगी.

रविवार, सितंबर 20, 2009

ईद मुबारक


आज सारी दुनिया में ईद मनाई जा रही है । कल हमारे प्यारे देश भारत में भी ईद माने जायेगी । एक तरफ़ जहाँ ईद हमें खुशियाँ मानाने का मौक़ा देती है वहीँ हमें इस अवसर पर यह भी सोचना चाहिए की इस्लाम में जी कहा गया है हम उस पर चल रहे हैं की नहीं। इस अवसर पर हमें यह भी सीचना चाहिए की हम देश के कितने काम आ रहे हैं। आज पूरी दुन्या में मुसलमानों को बदनाम करने की एक साजिश चल रही है ऐसे में हमारी यह कोशिश होनी चाहिए की हम दुनिया के सामने इस्लाम की सही तस्वीर पेश करें। इस में कोई दो राए नहीं की कुछ लोगों की ग़लती से इस्लाम बदनाम हो रहा है । ऐसे में हम सभों की यह जिम्मदारी बनती है की हम न सिर्फ़ मुस्लमान बल्कि हिन्दुस्तानी मुस्लमान होने पर गर्व करें । एक बार फिर सभी देशवासिओं को ईद की मुबारकबाद। खुदा हमारे मुल्क को बुरी नज़रों से बचाए।

शनिवार, सितंबर 19, 2009

कांग्रेस और नेशनल लोकतान्त्रिक गठबंधन को झटका

दिल्ली की दो और बिहार की १८ सीटों के जो नतीजे आए हैं उस से एक तरफ़ जहाँ लालू प्रसाद यादव और उनके मजुदा दोस्त राम विलास पासवान को काफी लाभ हुआ है वहीँ दिल्ली में कांग्रेस और बिहार में नेशनल लोकतान्त्रिक गठबंधन को काफी नुकसान हुआ है। मध्यावधि चूनाव के नतीजे ने यह साबित कर दिया है की दिल्ली में शिला दीक्षित और बिहार में नीतिश कुमार लाख यह दावा करें की उनकी हुकूमत से जनता बहुत खुश है मगर सच्चाई क्या है इसका अंदाजा इस नतीजे से लग गया है । दिल्ली में शिला की सरकार को अभी ज्यादह दिन नहीं हुए हैं और उसे दो सीट का नुकसान हो गया इसका मतलब तो यही निकलता है की जनता को फिलहाल कांग्रेस की हुकूमत पर भरोसा नही है। दिल्ली में ओखला विधान सभा की सीट पर यहाँ के मशहूर लीडर आसिफ मोहम्मद खान की जीत बहुत खास है। पिछले चूनाव में लगभग ५०० वोट से हरने वाले आसिफ ने इस बार ५००० वोट से जीत दर्ज की । आसिफ की जीत इस कारन से भी खास है की उन्हें हराने के लिए ओखला में मौजूद मुसलमानों के कई बड़े संगठन ने उन्हें हराने के लिए चूनाव के दिन जनता से अपील की थी। शर्म की बात तो यह है की उनमें से कई अब आसिफ को उनकी जीत पर बधाई दे रहें हैं।
आसिफ उन नेताओं में से हैं जो जनता की भलाई को सब से ऊपर रखते हैं । यही कारन है की उनकी जीत पर सबसे ज्यादह खुशी ग़रीबों ने मनाई । आसिफ का एक बड़ा काम यह भी कहा जा सकता है की जीत के तुंरत बाद सबसे पहले वोह आतिफ और साजिद की कब्र पर गए जिन दोनों को उस जामिया नगर एनकाउंटर में मर गिराया गया था जिस की सच्चाई पर अब तक शक किया जा रहा है। हो सकता है की यह एनकाउंटर सही हो मगर सिर्फ़ मुस्लमान ही नही बल्कि अख़बार और दूसरे मीडिया वाले भी इस पर शक की निगाह से देख रहे हैं।
बिहार के नतीजे नीतिश कुमार को झटका देने वाले है। अलबत्ता इस नतीजे ने लालू और पासवान को ज़रूर खुश कर दिया है । खास तौर पर लालू की खुशी इस लिए जायज़ है क्यूंकि कुछ लोगो ने अब सियासत में लालू को बिल्कुल समाप्त समझ लिया था। खैर नीतिश और शिला को यह समझना होगा की यह झटका अभी छोटा है जो बाद में बढ़ भी सकता है।

कांग्रेस और एन डी इ

शनिवार, सितंबर 12, 2009

दाढ़ी से सम्बंधित सुप्रीम कोर्ट का काबिले तारीफ फ़ैसला

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के एक विद्यार्थी मोहम्मद सलीम के सिलसिले में जो फ़ैसला सुनाया है उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। ज्ञात रहे की निर्मला कॉन्वेंट स्कूल ने सलीम को स्कूल से यह कह कर निकल दिया था की यदि स्कूल में रहना है तो दाढ़ी कटनी होगी । अब कोर्ट ने कहा है की दाढ़ी रखना किसी की धार्मिक आस्था का सवाल है और उसे कटाने के लिए किसी को मजबूर नही किया जा सकता। पता नही हमारे देश में जो की विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और उसकी एक सब से बड़ी खूबी यह है की यहाँ सभी धर्म के लोग आपस में मिल कर रहते हैं इसके बावजूद कभी दाढ़ी को लेकर तो कभी दोपट्टा को लेकर यहाँ हंगामा खड़ा होता रहता है। यदि कोई लड़की दुपट्टा पहन कर स्कूल जाती है तो उसपर किसी को आपत्ति नही होनी चाहिए। इसी तरह यदि कोई व्यक्ति दाढ़ी रखना चाहता है तो यह उसका अपना मामला है इस पर भी किसी को आपत्ति नही होनी चाहिए। ऐसा नही है की दाढ़ी वाले स्टुडेंट तेज़ नही होते। भारत में दाढ़ी रखे हुए मुस्लमान बड़े बड़े ओहदों पर है और वोह अपना और देश का नाम रोशन कर रहे हैं। और वैसे भी सब से बड़ी बात धार्मिक आस्था का है यदि कोई मुस्लमान दाढ़ी रखना चाहता है तो किसी को उसे रोकने का हक नहीं है। उसी तरह यदि कोई हिंदू तिलक लगना छठा है या फिर वोह टिकी रखना चाहता है तो इस पर किसी को आपत्ति क्यों हो। यह उसकी अपनी मर्ज़ी है। जो लोग आए दिन कभी ड्रेस कोड के नाम पर तो कभी किसी और नाम पर इस तरह की बकवास करते रहते हैं उन्हें अपनी हरकतों से बाज़ आ जाना चाहिए।

रविवार, अगस्त 02, 2009

यह कैसी हिंदू मुस्लिम एकता ?

भारत की सब से बड़ी खूबी यह है की यह एकता में अनेकता वाला देश है। बच्चों को किताबों में यही पढाया जाता है की भारत देश की सब से बड़ी खूबी यह है की यहाँ कई धर्मों के लोग एक साथ मिल कर रहते है मगर क्या इमरान हाश्मी के ताज़ा मामले से ऐसा लगता है की यहाँ सभी धर्मों के लोग आपस में मिल कर रहते है। यह सच है की यहाँ ज़्यादा तर लोग ऐसे हैं जो हिंदू मुस्लिम होते हुए भी आपस में खूब मिलकर रहते हैं मगर इस से इंकार नहीं क्या जा सकता की बहुत ऐसे लोग भी हैं जो आपस में मिलकर नहीं रहना चाहते। इमरान हाश्मी के मामले में यह बात सच साबित होती है। ज़रा सोचिये इमरान हाश्मी जैसे हीरो जो की महेश भट्ट के भांजे हैं को मुंबई में सिर्फ़ इसलिए घर नहीं मिल रहा है की वोह मुस्लमान हैं तो फिर छोटे मोटे मुसलमानों को कौन पूछेगा। इमरान हाश्मी से पहले जावेद अख्तर और शबाना आज़मी जैसे स्टारों को भी यही मुश्किल पेश आ चुकी है।
जावेद अख्तर का मामला तो यह है उनके बिना फ़िल्म इंडस्ट्री के बारे में सोचा भी नही जा सकता। यही हाल शबाना आज़मी का भी है। एक और खास बात यह है की जो मुस्लमान पक्के है (पक्के से मतलब जो पाबन्दी से नमाज़ और रोजा रखने वाले हैं ) वोह फ़िल्म स्टारों को पक्का मुस्लमान नही समझते। अब गौर करने वाली बात ये है की जब इन नाव्हने गाने वालों को घर नही मिल रहा है तो बड़ी बड़ी दाढ़ी रखने वाले मुसलमानों को घर मिल सकेगा। सरकार को इस सिलसिले में संजीदगी से गौर कर के उन लोगों के विरूद्व करवाई करनी चाहिए। एक दूसरे से नफरत करने वाले इन लोगों को यह बात क्यों नही समझ में नही आती की वोह ऐसी सोच रख कर देश के विकास में रोकावत बन रहे हैं। देश के पूर्ण विकास के लिए सभी धर्मों के लोगों का मिल कर रहना ज़रूरी है।

शुक्रवार, जुलाई 31, 2009

सच का सामना यानि बेहूदगी की हद

इन दिनों स्टार पलास पर आ रहा रियलिटी शो सच का सामना काफी हित हो रहा है। इस के हित होने की सब से बड़ी वजह यह है की इसमे वोह सवाल पूछे जा रहे है जो किसी गन्दी मगज़िने या वेबसाइट में पूछे जाते है। इस शो में जैसे जैसे इनाम की रक़म बढती जाती है सवाल गंदे होते जाते है। इस में कोई दो राइ नहीं की इस शो के दौरान जो भी सवाल किए जा रहें है वोह सब हमारी ज़िन्दगी के हिस्से है और हमारे देश में हो रहे हैं। मिसाल के तौर पर हमारे यहाँ पति पत्नी को धोका दे रहा है, पत्नी पति को धोका दे रहा, शादी से पहले और शादी के बाद दूसरों से शारीरिक सम्बन्ध मर्द भी बना रहा है और औरतें भी बना रही है , दूसरे देशों की तरह हमारे मुल्क में भी लड़कियां बालिग होने से पहले गर्भवती हो रही हैं मगर क्या इन बैटन को पूरी दुन्या के सामने बताना ज़रूरी है। आख़िर लोग इतने बेशर्म क्यों हो गए हैं की वोह साडी दुन्या को यह बताना चाहते हैं की मैं अपनी बीवी के अलावाह भी दूसरी औरतों से सम्बन्ध बनता हूँ , आखिर लड़की इतनी बेशर्म क्यों हो गई है की वोह साडी दुन्या को यह बता रही है की हाँ हमने मर्दों का नंगा डांस देखा है, बाप इतना बेशर्म क्यों है जो अपनी बेटी के सामने पूरी दुनिया को यह बता रहा है की उसे अपनी बेटी से भी छोटी उम्र की लड़की से सेक्स किया।
दुनिया के दूसरों मुल्कों की तरह हमारे मुल्क में भी कई बुराईयाँ हैं मगर मुझे नही लगता की इसे पूरी दुन्या को बताना ज़रूरी है। सिद्धार्थ बासु ने कौन बनेगा करोड़पति और आपकी कचहरी जैसे कमल के प्रोग्राम बनाये है फिर पता नहीं उन्हें ऐसा क्या हुआ की उन्हों ने इतना बकवास प्रोग्राम बनाया। टेलीविजन चैनल वालों को तो सिर्फ़ टी आर पी से मतलब है इस के लिए वोह किसी भी हद तक जा सकते हैं। अपने देश में लाख बुरे होने के बावजूद सच का सामना हिंदुस्तान जैसे मुल्क में दिखाना मुनासिब नही है। अगर यह शो चलाना है तो इसे आधी रात के बाद दिखाया जाए और फिल्मों की तरह इसे भी सिर्फ़ बालिगों के लिए जैसा सर्टिफिकेट दिया जाए।

मंगलवार, मई 26, 2009

समाजवादी पार्टी , आज़म खान और मुस्लमान

अंततः आज़म खान को समाजवादी पेर्टी से निकल दिया गया। इसकी खास वजह जो भी हो मगर यह तो पहले ही तय हो छुका था की खान साहब को देर सवेर पार्टी से निकला ही जाएगा। खान साहब ने कल्याण सिंह ख विरोध किया था यह तो अच्छी बात थी। कोई भी मुस्लमान उस व्यक्ति को कई स्वीकार करेगा जो बाबरी मस्जिद की शहादत का जिम्मेदार है। मगर खान साहब की यह ग़लती थी की उन्हों ने पार्टी की रामपुर से उम्मीदवार जाया प्रदाह को हराने की हर मुमकिन कोशिश की। हालाँकि वोह इसमे कामयाब नही हुए मगर पूरे ऊत्तर प्रदेश में उन्हों ने पार्टी को नुकसान ज़रूर पहुँचाया। अब खास सवाल यह है की अब जबकि आज़म खान को पार्टी से निकल दिया गया है तो अब उनका अगला रुख क्या होगा और दूरे यह की क्या मुस्लमान मुलायम जी की इस हरकत को उचित मानेंगे।
आज़म खान ने पार्टी में रहते हुए पार्टी के खिलाफ काम मय यह मुनासिब नहीं है मगर मुलायम ने भी उन्हें पार्टी से निकल कर अच्छा नही क्या है। इस से मुसलमानों में ग़लत संदेश जाएगा। उत्तर प्रदेश में मुस्लमान समाजवादी को अपना समझते है । कल्याण से हाथ मिलकर मुलायम लोक सभा में नुकसान उठा चुके है अब उन्हों ने आज़म खान को परत्यय से निकल दिया है हो सकता है उन्हें इसका भी नुकसान उठाना पड़े। क्योंकि मुसलमानों को लगता है आज़म खान को पार्टी से निकल कर मुलायम जी ने मुसलमानों की बेईज्ज़ती की है। मुलायम को इसका एक अच्छा हल निकलना चाहिए वरना यह समाजवादी जैसी एक अच्छी पार्टी के लिए अच्छा नही है.

मंगलवार, मई 12, 2009

सियासी जोड़ तोड़ शरू

पंद्रहवीं लोक सभा के लिए अब केवल अन्तिम दौर का मतदान बाकी है। अब तक लगा भाग हर सियासी पार्टी को अपनी हैसियत का अंदाजा हो चुका है अलबत्ता कुछ नेता ऐसे है जो अपनी हसियत को समझने के बावजूद उस से इंकार कर रहे है और बार बार यही कह रहे हैं की सफलता तो हमें ही मिलेगी। कौन सही दावे कर रहा था और कौन केवल बकवास कर रहा था इसका फ़ैसला तो १६ तारिख को हो जाएगा अलबत्ता नेताओं ने अपने तौर पर जोड़ तोड़ करना शरू कर दिया है। जिस पार्टी का सिर्फ़ एक दो एम पी जीतेगा वोह भी इस उम्मीद में है की हुकूमत किसी की बने हम उसमे शामिल हो जायेंगे और पूरी कोशोश करेंगे की मिनिस्ट्री ज़रूर मिले। सच्चाई यह है की भारत में अधिकतर नेताओं को सिर्फ़ इस बात में दिलचस्पी है की उस की जीत होती रहे और वोह सियासत में बना रहे चाहे जनता बर्बाद ही क्यों न हो जाए। आज अगर यू पी ऐ की हुकूमत के बन्ने में कुछ संशय है टी इसकी बड़ी वजह राम विलास पासवान और लालू म्प्रसाद यादव की हठधर्मी है यदि इन दोनों ने कांग्रेस को ३ के बजाये ५-६ सीटें भी दे दीं होती तो बिहार में कोम्मुनल पार्टी की जीत मुश्किल होती है मगर लगता है की इन की ग़लती से इनको तो नुकसान होगा ही कांग्रेस को भी नुकसान होगा।
खैर अब जो भी हो सरकार जिस की भी बने आम जनता का भला होने वाला नही है। यदि नेता आम जनता का भला चाहते हैं तो क्या यह मुमकिन है की कांग्रेस और बीजेपी मिलकर सरकार बना ले। ऐसा कभी मुमकिन नहीं है। यह पार्टी दोबारह इन्तिखाब करा देगी मगर मिलकर हुकूमत नही बनाएगी। क्योंकि इन्हे जनता की नही अपनी फ़िक्र है।

बुधवार, मार्च 18, 2009

seedha rasta: नफरत के सौदागर

seedha rasta: नफरत के सौदागर

नफरत के सौदागर

वरुण गाँधी ने मुसलमानों से सम्बंधित जो भी बयां दिया है उस पर हिंदुस्तान में हंगामा मचा हुआ है मगर ईमानदारी की बात येह है की इस पर हंगामा मचने की कोई ज़रूरत नहीं है। वरुण और उस तरह के हजारों लोग भारत में ऐसे है जो मुसलमानों से नफरत करते है। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों से नफरत की बुन्याद पर ही तो सियासत करती है। आज वरुण से पार्टी पल्ला झाड़ रही है मगर इस पार्टी में अधिक तर लोग ऐसे है जिन्हें मुस्लमान से नफरत है और वोह देश को हिंदू और मुस्लमान में बाँट कर की सियासत करना चाहते है। इस के अलावा उनके पास और कोई मुद्दा ही नही है। अफ़सोस की बात यह है की वरुण जैसा नौजवान मुसलमानों के बारे मैं ऐसा ख्याल रखता है ज़रा जैसे जैसे उसकी उम्र बढेगी वोह कितना खतरनाक हो जाएगा। क्या ऐसे लोग भातर की तरक्की के दुश्मन नहीं हैं। कभी कभी होता है की जोश में कुछ बोल गए और बाद में अहसाह होने पर ग़लती मान ली मगर वरुण तो बेशर्मी से कह रहें हैं की मैंने कोई ग़लती की ही नही।
वरुण को यह समझ में क्यों नही आता की देश के विकास के लिए हिंदू मुस्लमान और दूसरे सभी धर्म के लोगों में एकता ज़रूरी है। देश को बाँट कर कुछ दिनों तक को सियासत की जा सकती है मगर ऐसा हमेशा नही चलेगा। अब गेंद चूनाव आयोग के पाले में है उसे चाहिए की वरुण के विरुद्ध करे और भाजपा यदि सही है तो वरुण को पार्टी से निकल दे.

नफरत के सौदागर

वरुण गाँधी ने

नफरत के सौदागर

नफरत के saudagar

नफरत के सौदागर

मंगलवार, फ़रवरी 24, 2009

seedha rasta: रहमान की जय हो

seedha rasta: रहमान की जय हो

रहमान की जय हो

संगीतकार रहमान ने एक साथ दो दो ऑस्कर जीत कर पूरे देश का नाम गर्व से ऊंचा कर दिया है। हालाँकि बहुत से लोगों का यह कहना है की यह फ़िल्म हिंदुस्तान की है ही नही इसलिए हमें इस पर ज्यादह खुश होने की ज़रूरत नही है। अगर यह फिल हमारे देश की नही है और इसे एक विदेशी दिरेक्टोर ने बनाया है तो भी हमें इस लिए खुश होना चाहिए की इसके ज्यादह तर कलाकार भारतीय है। कुछ लोगों को इस पर भाई आपत्ति है की हमारी ग़रीबी का मजाक उड़ायागया है। जबकि ऐसा नही है भाई अगर हमारे यहाँ ग़रीबी है तो फिर इसे दिखने में क्या हर्ज़ है हमें अफ़सोस तो इस बात का होना चाहिए की अपने देश के विषय पर ही इतनी अच्छी फ़िल्म हमारे यहाँ का कोई दिरेक्टोर नहीं बना सका।
वैसे भी यदि लोगों को फ़िल्म की सफलता पर खुशी मानाने में एतेराज़ है तो कम से कम इस बात पर तो खुशी मनाई ही जा सकती है की हमारे तीन कलाकार रहमान, रसूल और गुलज़ार ने कमल किया और ऑस्कर हासिल किया। रहमान जैसे संगीतकार की तो जितनी भी तारीफ की जाए कम है। जब से यह शक्श फिल्मी दुन्या में आया है इसने म्यूजिक का नक्शा ही बदल दिया है। ऑस्कर मिलने के बाद यह मौक़ा ऐसा है की हम सब मिलकर खुशयां मनाएं अगर इस मामले पर फालतू की बात करता है तो ऐसे लोगों को पघल ही समझा जाए गा। आप फिल से कोई मतलब न रखें मगर इस पर तो खुश हों की आपके तीन तीन कलाकारों को ऑस्कर जैसा अवार्ड मिला है। हम तो यही कहेंगे की रहमान की भी जय हो और भारत की भाई जय हो.

शनिवार, फ़रवरी 14, 2009

वैलेंटाइन और हमारा देश

आज वैलेंटाइन डे है। हर कोई अपने अपने तौर पर इसे मन रहा है। जिसकी जितनी औकात है वोह इस मौके पर अपने अपने वैलेंटाइन को खुश करने के लिए खर्च कर रहा है। मगर एक अहम् सवाल यह है की क्या वैलेंटाइन डे मानना ज़रूरी है और दूसरा अहम् सवाल यह है की क्या अगर कोई वैलेंटाइन डे मना रहा है तो क्या हमें यह ठेका मिला हुआ है की हम उन्हें परेशां करें। मेरे हिसाब से वैलेंटाइन डे मनाना और नहीं मानना हर किसी का अपना अपना अधिकार है किसी दूसरे को यह बताने की ज़रूरत नही है की वैलेंटाइन डे सही है या ग़लत। पर इतना ज़रूर है की जो लड़के लड़कियां वैलेंटाइन डे पर किसी खास पारकर की मस्ती करना चाहते हैं उन्हें यह ख्याल रखना चाहिए की अभी हमारा देश इतना नहीं खुला है की हम सड़कों पर ही प्यार करने लगें। इसलिए अपने प्यार का इज़हार बंद कमरों में ही करें तो बेहतर है।
जो लोग वैलेंटाइन जैसी चीज़ों का विरोध करते हैं वोह इस लिए कुछ हद तक सही है की आज कल प्रेमी युगल पार्कों या सड़कों पर वोह सब कुछ करते नज़र आते हैं जो उन्हें बंद कमरों में करना चाहिए। आज राजधानी दिल्ली समेत आप दूसरे शहरों के किसी पार्क में चले जायें वहां प्रेमी युगल आईसी ऐसी हरकतें करते हैं की आप शर्म से अपनी ऑंखें बंद कर लेंगे। दुन्या के दूसरे कई देशों की तरह हमारे मुल्क में भी अब तरह तरह की बुरायिओं ने जन्म ले लिया है । बढ़ता गे कल्चर , लेस्बियन की बढती संख्या , सड़कों पर ग्राहकों को तलशती कॉल गर्ल यह सब उसी का नतीजा है । मगर इसका मतलब यह नही है की इन चीज़ों से ऑंखें मूँद ली जायें। ऐसी बुराइयों पर कंट्रोल ज़रूरी है। अगर इस प्रकार की हरकत में शामिल लोगों को ऐसे ही छूट दिया जाता रहा देश में समाज का ताना बना बिखर जाएगा। आप ऐश करें हमें इस से मतलब नही है मगर इस बात का ख्याल रखें की आप की हरकतों से कोई दूसरा परेशां नही हो और समाज ख़राब होने से बचे।
इसमें कोई शक नहीं की हिंदुस्तान में अब वोह सब कुछ होता है जो दूसरी वेस्टर्न देशों में होता है मगर इसे अप्पने यहाँ आम नहीं होने दिया जा सकता। जो जैसी भी बुरी हरकतों में लिप्त है वोह इसे अपने तक ही सिमित रखे इसे देश मैं आम करने की ज़रूरत नहीं है। इस बात का ख्याल रखें की आप को देख कर दूसरा भी ख़राब हो सकता है।

शनिवार, जनवरी 31, 2009

चूनाव की तैयरी शुरू

अगले साल लोक सभा के चुनाव होने है। इस लिए हर पार्टी ने इस सिलसिले में अपनी अपनी तैयरी शोरो कर दी है । हर पार्टी का बस एक ही मकसद है सत्ता पाना। उसके लिए यह पार्टियाँ किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। कोई संजय दत्त को शामिल करना चाह रहा है तो कोई संजय नही तो मान्यता को ही चाहता है जबकि हिंदुस्तान में बहुत कम ही लोगों को पता है की यह मान्यता कौन है। समाजवादी पार्टी ने इलेक्शन की तय्यारी के सिलसिले में अपने साथ उस कल्याण सिंह को शामिल कर लिया है जो बाबरी मस्जिद को गिराने में सब से आगे आगे थे। मुलायम ख़ुद को मुसलमानों का सब से बड़ा हमदर्द कहते हैं इसके बावजूद उन्हों ने अपने साथ कल्याण को शामिल कर के यही बताने की कोशिश की है की मुस्लमान बहुत बेवकूफ है वोह इन बातों को नही समझ सकेगा। कमल की बात तो यह भी है की कुछ मुस्लमान भी मुलायम की इस हरकत को ग़लत नही समझ रहे हैं। उन्हें लगता है की सियासत में ऐसा चलता है और अगर मुलायम ने ऐसा किया है तो इसमें क्या बुरे है। ज़रा सोचिये मुलायम और कल्याण सिंह की सोच में कितना फर्क है एक जहाँ सेकुलर कहलाते है वही दूसरे की सियासत ही इस बात पर चलती है की जितना मुमकिन हो मुसलमानों के खिलाफ नफरत फिलाया जाए। ऐसे यह दोनों एक ही पटरी पर कैसे आ सकते हैं।
लगता है की कुछ मुसलमानों का ज़मीर जगा है इस लिए उन्हों ने यह तै किया है की यदि मुलायम नही मने तो वोह समाजवादी पार्टी से अलग हो जायेंगे। मगर कुछ ऐसे भी हैं जो अभी भी उन्हें मजबूती के साथ पकड़े हुए हैं। यह वोह मुस्लमान हैं जिन्हें शर्म नही है उनका सिर्फ़ एक ही मकसद है लाभ हासिल करना और इस के लिए वोह किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं यहाँ तक की ऐसे लोग काम का सौदा भी कर सकते हैं। यही वजह है की इलेक्शन के नज़दीक आते ही मुस्लिम नेताओं ने अपने लिए मुख्तलिफ पार्टी में जगह तल्शनी शोरो कर दी है। जिस को जहाँ फायदाः नज़र आ रहा है वोह वहीँ भाग रहा है। उसे इस बात की फ़िक्र नही है की मुसलमानों का भला होगा या नुकसान।
ऐसे नाज़ुक मौके पर मुसलमानों को चाहिए की वोह अपनी काम में ही मौजूद अपने दोस्त और दुश्मन को पहचाने और ख़ुद को इस तरह तैयार करें की कोई उनका ग़लत इस्तेमाल नही करे.