शनिवार, जनवरी 31, 2009

चूनाव की तैयरी शुरू

अगले साल लोक सभा के चुनाव होने है। इस लिए हर पार्टी ने इस सिलसिले में अपनी अपनी तैयरी शोरो कर दी है । हर पार्टी का बस एक ही मकसद है सत्ता पाना। उसके लिए यह पार्टियाँ किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। कोई संजय दत्त को शामिल करना चाह रहा है तो कोई संजय नही तो मान्यता को ही चाहता है जबकि हिंदुस्तान में बहुत कम ही लोगों को पता है की यह मान्यता कौन है। समाजवादी पार्टी ने इलेक्शन की तय्यारी के सिलसिले में अपने साथ उस कल्याण सिंह को शामिल कर लिया है जो बाबरी मस्जिद को गिराने में सब से आगे आगे थे। मुलायम ख़ुद को मुसलमानों का सब से बड़ा हमदर्द कहते हैं इसके बावजूद उन्हों ने अपने साथ कल्याण को शामिल कर के यही बताने की कोशिश की है की मुस्लमान बहुत बेवकूफ है वोह इन बातों को नही समझ सकेगा। कमल की बात तो यह भी है की कुछ मुस्लमान भी मुलायम की इस हरकत को ग़लत नही समझ रहे हैं। उन्हें लगता है की सियासत में ऐसा चलता है और अगर मुलायम ने ऐसा किया है तो इसमें क्या बुरे है। ज़रा सोचिये मुलायम और कल्याण सिंह की सोच में कितना फर्क है एक जहाँ सेकुलर कहलाते है वही दूसरे की सियासत ही इस बात पर चलती है की जितना मुमकिन हो मुसलमानों के खिलाफ नफरत फिलाया जाए। ऐसे यह दोनों एक ही पटरी पर कैसे आ सकते हैं।
लगता है की कुछ मुसलमानों का ज़मीर जगा है इस लिए उन्हों ने यह तै किया है की यदि मुलायम नही मने तो वोह समाजवादी पार्टी से अलग हो जायेंगे। मगर कुछ ऐसे भी हैं जो अभी भी उन्हें मजबूती के साथ पकड़े हुए हैं। यह वोह मुस्लमान हैं जिन्हें शर्म नही है उनका सिर्फ़ एक ही मकसद है लाभ हासिल करना और इस के लिए वोह किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं यहाँ तक की ऐसे लोग काम का सौदा भी कर सकते हैं। यही वजह है की इलेक्शन के नज़दीक आते ही मुस्लिम नेताओं ने अपने लिए मुख्तलिफ पार्टी में जगह तल्शनी शोरो कर दी है। जिस को जहाँ फायदाः नज़र आ रहा है वोह वहीँ भाग रहा है। उसे इस बात की फ़िक्र नही है की मुसलमानों का भला होगा या नुकसान।
ऐसे नाज़ुक मौके पर मुसलमानों को चाहिए की वोह अपनी काम में ही मौजूद अपने दोस्त और दुश्मन को पहचाने और ख़ुद को इस तरह तैयार करें की कोई उनका ग़लत इस्तेमाल नही करे.

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