रविवार, अगस्त 07, 2011

इतनी बेशर्मी भी ठीक नहीं है


इस बात से किसी को इनकार नहीं हो सकता की अब हमारे देश ने बहुत तरक़्क़ी कर ली है बल्कि कई मामलों में तो हमने कई बड़े देशों को पीछे भी छ्ोड़ दिया है. मगर अच्छी बात तब है जब हम पढ़ने में तरक़्क़ी करें, खेल में तरक़्क़ी करें, बीजनेस्स में तरक़्क़ी करें अगर हम दूसरे देशों से बेशर्मी में मुक़ाबला करने लगे तो इसे किसी मामले में ठीक नहीं कहा जा सकता. कनाडा से प्रेरित हो कर भारत जैसे देश में बेशर्मी मोर्चा की वॉक या फिर स्लॅट वॉक जैसा आयोजन एक बहुत ही बुरी शुरूआत है जिसका अंजाम बहुत बुरा होगा. पहले सेम सेक्स में शादी , फिर सच का सामना जैसा प्रोग्राम, लिव इन रिलेशन में रहने की बढ़ती परविर्ति और फिर अब स्लट वॉक इन सब से हम आख़िर किया साबित करना चाहते हैं. कोई भी होशमंद आदमी स्लट वॉक को कैसे सही ठहरा सकता है. यह तो अजब बात हुई की हम जैसे कपड़ों में चाहें घूमें हमें छेड़ो मत. बहुत से लोगों को मेरी यह बात बुरी लग सकती है मगर किया शेर के सामने गोश्त रखनकर उस से यह उम्मीद रखना की वो गोश्त नहीं खाएगा बेवक़ूफी नहीं तो और किया है. उसी प्रकार यदि किसी अर्धनांग लड़की को देखकर किसी का सेक्स न जागे तो किया उसे नपुंसक नहीं समझा जाएगा। इस हक़ीक़त को तसलीम करना पड़ेगा की जो महिलायें या लड़कियाँ अच्छे कपड़ों में बाहर निकलती है उनके साथ छेड़ छाड़ या रेप जैसी घटनाएँ बहुत ही कम होती हैं. अगर किसी को नंगे ही रहना ही तो अपने घर में रहे ना, बाहर नंगे घूमना किया ज़रूरी है. उसी प्रकार भारत में लिव इन रिलेशन को कैसे उचित ठहराया जा सकता है. जीवन का मज़ा लेने के लिए ही तो शादी की जाती है. और वैसे भी जो लोग लिव इन में रहते हैं वो दरअसल सामाजिक ज़िम्मेदारियों से भागते हैं. लिव इन रहने वाली महिलायें या फिर मर्द वो होते हैं जो अपने बच्चों का बोझ, अपने माँ बाप का बोझ और फिर समाज का बोझ नहीं उठना चाहते है, उनका सिर्फ़ एक ही मक़सद होता है शारीरिक मज़े उठना और वो सिर्फ़ इसीलिए लिव इन में रहते हैं. किसी भी धर्म में इस प्रकार के रिश्ते को उचित नहीं माना जा सकता. आज भारत ने पश्चिमी देशों की बहुत सी बातों को अपना लिया है और इसी कारण बहुत सी बुराइयाँ हमारे देश में भी फैलने लगी हैं. यदि आने वाले दिनों में इस प्रकार के स्लॅट वॉक या फिर गे या लेसबियन की रैलियों पर रोक नहीं लगाई गयी तो इसका अंजाम ख़तरनाक हो सकता है.

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