मंगलवार, मार्च 13, 2012

बेगुनाही की 14 साल लंबी सज़ा



भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। इसे सेकुलर देश भी कहा जाता है। एक ऐसा देश जिसके संविधान में हर किसी के साथ चाहे वह किसी भी धर्म का हो बराबरी का सलूक करने को कहा गया है। ऐसा कहा जाता है की यहाँ हर किसी को अपनी बात कहने की आज़ादी है। इसी लोकतान्त्रिक और सेकुलर देश का एक नागरिक मोहम्मद आमिर खान भी है जिसे बिना किसी कसूर के एक दो नहीं बल्कि पूरे 14 साल जेल के अंदर गुंजारने पड़े। जिस तरह विश्व के सबसे बड़े सेकुलर देश भारत में हर धमाके के बाद मुस्लिम नौजवानों को गिरफ्तार कर के जेल में डाल दिया जाता है उसी का शिकार आमिर खान भी बने। गत दिनों मैंने आमिर से उसके दिल्ली के आज़ाद मार्केट स्थित घर पर मुलाकात की। आमिर से मुलाक़ात के दौरान मुझे एक अच्छी बात यह लगी की जहां बेगुनाह होने के बावजूद 14 साल जेल में गुजारने पर भी वह हिम्मत नहीं हारे हैं वहीं वह उन सबको माफ कर रहे हैं जिनकी गलती की वजह से उन्हें अपने कीमती 14 साल जेल में गुजारने पड़े वह भी उस गुनाह के लिए जो उसने किए ही नहीं।

वह काली रात
आमिर 20 फरवरी 1998 की वह काली रात नहीं भूलते जब उन्हें कुछ पोलिस वालों ने यह कहते हुये गिरफ्तार कर लिया कि दिसंबर 1996 और अक्टूबर 1997 के दौरान दिल्ली, रोहतक, सोनीपत और गाजियाबाद इत्तेयादी में हुये 19 मुखतलिफ़ धमाकों का ज़िम्मेदार तू ही है। आमिर उस काली रात को याद करते हुये कहते हैं पोलिस वालों ने मुझे जबरदस्ती उठाकर जिप्सी में बैठा दिया और मेरे हाथ पैर बांधने के अलवाह मेरी आँखों पर पट्टी भी लगा दी। यह कौन जगह थी और वह मुझे कहाँ ले गए थे यह तो मुझे नहीं पता मगर अगले सात दिनों तक मेरे साथ जो सलूक किया गया उसे सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं। इस दौरान न सर्फ मुझे मारा पीटा गया, मेरे गूदे में पेट्रोल डाला गया बल्कि किसी को जिस्मानी तौर पर तकलीफ पहुंचाने के जो भी तरीके हो सकते हैं वह सब मुझपर आज़माये गए और मुझ से सादे काग़ज़ों पर जबरदस्ती हस्ताक्षर कराये गए। उन सात दिनों के दौरान मुझे ऐसी ऐसी तकलीफ़ें दी गईं जिसका अहसास मुझे आज भी होता है। खासतौर पर सर्दी के दिनों में 14 साल गुज़र जाने के बाद भी मेरे पैरों में दर्द शुरू हो जाता है। दिमागी तौर पर मुझे इतना परेशान किया गया कि अब मैं हाइपरटेंशन का शिकार हो गया हूँ और मेरा बी पी कंट्रोल नहीं रहता। आमिर ने अपनी दुख भरी दास्तान सुनते हुये आगे कहा कि मुझे सात दिन तक हर प्रकार से टोरचर करने के बाद कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट में चूंकि अंग्रेज़ी में कारवाई हो रही थी इसलिए मुझे पता नहीं चला कि वकील साहब कहना किया चाह रहे है। जब मैं ने चार्जशीट देखि तो मुझे पता चला की पुलिस ने मुझे रेवोलवर,धमाकाखेज पदार्थ, स्कूल की सर्टिफिकेट, आचरण सेर्टिफिकेट और राशन कार्ड से साथ पुरानी दिल्ली रेल्वे स्टेशन से पास से गिरफ्तार किया था।

वालिद को नहीं दफना पाने का ग़म
आमिर कि गिरफ्तारी कि खबर उनके घर वालों को नहीं दी गयी। आमिर कहते हैं, मेरे पिता जो अब इस दुनिया में नहीं रहे को मेरे गिरफ्तार होने और फिर जेल में डाले जान की खबर अखबारों के माध्यम से लगी। बाद में बड़ी कोशिश और इधर उधर भागने के बाद उनहों ने वकील करने में सफलता हासिल कर ली। मगर इस पूरे मामले के दौरान वह इतना टूट चुके थे की उनका ज़िंदा रहना मुश्किल हो गया। मेरे अब्बू के लीवर में इन्फेक्शन हो गया और फिर एक दिन मेरे जेल रहते हुये उनकी मौत हो गयी। आमिर ने बहुत ही अफसोस का इजहार करते हुये कहा की वह इस दुनिया से चले गए मगर अपनी मौजूदगी में अपने बेक़सूर बेटा को जेल से बाहर निकालने में कामयाब नहीं हो सके। हद तो तब हो गयी जब मुझे अपने अब्बू की मौत का पता उनके मौत के लगभग एक हफ्ता बाद लगा जब मेरे वकील फिरोज खान गाजी साहब ने मुझे इसकी जानकारी दी। अब इस दुनिया में मेरी मदद के लिए सिर्फ मेरी माँ रह गयी थी। उस वक़्त जब मैं गिरफ्तार हुआ था तो कुछ खानदान वाले भी मेरी मदद के लिए सामने आए थे मगर जब पुलिस ने सबको डराना धमकाना शुरू किया तो फिर हर कोई मुझ से और मेरे घर वालों से दूर होता चला गया। शुरू में तो अब्बू ने कानूनी मदद के लिए इधर उधर भागने का जिम्मा संभाला मगर उनकी मौत के बात यह सारी ज़िम्मेदारी मेरी अम्मी पर आ गयी। मेरी माँ एक पर्दानशीं खातून थीं उनहों ने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखि। जब भी निकली बहुत ही ज़रूरी काम से निकलीं मगर अपने बेक़सूर बेटे के रिहाई के लिए उन्हें दर दर भटकना पड़ा। और फिर एक दिन ऐसा आया जब किस्मत ने मेरा और मेरी माँ का भी साथ नहीं दिया। 2008 में उन पर फ़ालिज का हमला हुआ और ब्रेन हेमरेज की वजह से उनका हिलना डोलना और बोलना - सुनना सब कुछ बंद हो गया।

काश माँ की ज़बान से बेटा सुन पाता
आमिर खान ने अपनी दुख भरी दास्तां सुनाते हुये कहा की आज जब की मैं अपने जीवन के कीमती 14 साल जेल में गुजारने के बाद रिहा हो गया हूँ तो मुझे जिस बात का सबसे ज्यादा अफसोस है वो यह कि मेरी जिस माँ ने मेरी रिहाई के लिए दर दर की ठोकरें खाईं, मुझे जेल से बाहर देखने के लिए उन्हें कहाँ कहाँ नहीं जाने पड़े और आज जबकि मैं जेल से बाहर आ गया हूँ तो मेरी माँ इस हालत में नहीं है कि वह मेरी रिहाई की खुशियां माना सके और मुझे बेटा कह सके। बस वह मुझे रात दिन देखती रहती है। समझ नहीं पाता हूँ किया करूँ? मेरे घर मीडिया वाले आते रहते हैं माँ सबको देखती रहती है मगर समझ नहीं पाती की किया हो रहा है। लोग कहते है इंका इलाज संभव है मगर इलाज के लिए पैसों की भी ज़रूरत होती है। सारी दौलत तो मेरी रिहाई में खर्च हो गयी। अब्बू का कारोबार भी खत्म हो गया और कई दूसरी प्रॉपर्टी भी बिक गईं। अब एक बड़ी तमन्ना है की माँ की आवाज़ सुनूँ मगर ऐसा कब होगा मुझे नहीं मालूम।

संविधान पर आस्था बरकरार
बिना किसी जुर्म के जेल में 14 साल गुंजारने के बावजूद मोहम्मद आमिर को अपने देश के संविधान पर पूरा भरोसा है। यहाँ की न्याय वयवस्था को भी वह बहुत बेहतर मानते हैं। आमिर के अनुसार अच्छे बुरे तो हर जगह होते हैं। मुझे अफसोस सिर्फ इस बात का होता है जब देश एक है, यहाँ का संविधान एक है यहाँ के सभी नागरिक चाहे वह किसी धर्म के हों एक जैसे हैं तो फिर हर किसी के लिए अलग अलग पैमाना कियूं ? आमिर ने कहा की मुझे अफसोस इस बात का भी है कि जब पेशी के दौरान परगिया ठाकुर और कर्नल पुरोहित जैसे लोगों को लोग देखते तो उनपर फूलों की बारिश होती और जब मेरी बूढ़ी माँ मुझ बेक़सूर से मिलने की कोशिश करती तो उसे मिलने देने से मना किया जाता। मुझे इस बात का भी अफसोस है की जेल में दस साल गुज़ार देने के बाद जब मैं ने बेल की कोशिश की तो मेरे मामले को अति संवेधनशील कह कर बेल देने से मना कर दिया गया जबकि मुझ पर जो आरोप लगे थे उसमें सिर्फ 2 लोगों की मौत हुई थी और 18 ज़ख्मी हुये थे जबकि दूसरी तरफ मुझे पता चला कि हाशिम पूरा में 42 मुसलमानों की मौत के ज़िम्मेदार पोलिस वाले बेल पर हैं। यानि दो लोगों की मौत के ज़िम्मेदार को बैल नहीं और 42 लोगों की मौत के जिम्मेदार को बेल। आमिर ने बड़ी मासूमियत से कहा की कुछ यही सोच कर अफसोस होता है मगर इन सब के बावजूद मैं मायूस नहीं हुआ हूँ और देश के संविधान का सम्मान करता हूँ।

जेल से निकलने के बाद भी समस्या बरकरार
मोहामद आमिर को इस बात का भी अफसोस है कि उनके साथ पोलिस वालों ने जो बुरा किया वह तो किया ही, बेक़सूर होने के बाद भी उन्हें जेल में 14 साल गुजारने पड़े उसे भी अब भूल जाना चाहता हूँ मगर अफसोस तो अब इस बात का है कि अब जब बाहर आकार एक सभ्य ज़िदाजी गुजारना चाह रहा हूँ तो भी मुश्किल हो रही है। मैंने जेल में इसलिए अपनी पढ़ाई जारी राखी कि बाहर आकर अच्छा बीजनेस्स करूंगा या फिर कोई नौकरी करूंगा मगर अभी तक कोई खास रास्ता नज़र नहीं आ रहा है। आमिर कहते हैं, न तो कहीं से कोई मुआवजा मिल रहा है और न ही किसी ने अब तक कोई मदद की है। मदद के वादे तो कई लोगों ने किए हैं मगर कहीं से कोई मदद मिलेगी इसका बस इंतज़ार ही कर रहा हूँ। नौकरी की कहीं कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही । आमिर मायूसी के आलम में कहते हैं, सरकार कहती है मुसलमानों को मुख्यधारा में आना चाहिए। मैंने जेल रहकर पढ़ाई की मुख्यधारा में आना चाहता हूँ मगर मुझे कोई बतलाए तो सही की मुख्य धारा का मतलब किया होता है। किया जेल में बिना किसी कसूर के 14 साल गुजारना और फिर बाहर आकार भी पढ़ाई के बावजूद नौकरी के लिए तरसना यही मुख्य धारा है।

मीडिया का रोल
जेल में तो आमिर अखबार पढ़ते ही थे अब अपनी रिहाई के बाद आमिर को लगभग रौजाना किसी न किसी अखबार वाले को इंटरवेऊ देना पड़ रहा है। खुद भी पत्रकार बनने का शौक रखने वाले आमिर अब मीडिया को बड़ी अच्छी तरह से समझने लगे हैं। वह कहते है, आज मीडिया से बढ़कर कोई नहीं। एक ओर जहां मीडिया की वजह से कई बेक़सूर परेशान होने से बच जाते हैं वहीं मीडिया के कारण कई बेगुनाहों की ज़िंदगी भी तबाह हो जाती है। एक ओर आमिर ने जहां अपने घर आने वाले पत्रकारों और खास तौर पर अंग्रेज़ी के एक बड़े अखबार की एक महिला पत्रकार की तारीफ़ों के पुल बांधे वहीं उनहों ने बेईमान मीडिया वालों की मिसाल देते हुये कहा कि हुये कहा की गाजियाबाद में वहाँ के एक अखबार ने मुझे पाकिस्तानी लिख दिया। उस अखबार की उस ग़लत खबर की वजह से जहां मुझे वकील मिलने मुश्किल हो गए वहीं मुझे जो गार्ड जेल से कोर्ट ले जाते थे वह भी मुझे बुरी नज़र से देखने लगे और जेल के मेरे साथी भी मुझे कहने लगे की भाई तू पाकिस्तानी है पहले नहीं बताया। आमिर ने उस खबर के रेपोर्टर को माफ करते हुये कहा की यदि उस दिन वह गलत खबर नहीं छपी होती तो शायद मैं और पहले जेल से बाहर आ जाता।

मिल्ली तंज़ीमों का अफसोसनाक रवैया
बेक़सूर होने के बावजूद अपनी ज़िंदगी के कीमती 14 साल जेल में बिताने के बाद मोहम्मद आमिर खान अब रिहा हो चुके हैं और एक अच्छी ज़िंदगी जीने की तमन्ना रखते हैं मगर उनकी मदद के लिए अभी तक किसी मिलली त्ंज़ीम के हाथ नहीं उठे हैं। भारत में मुसलमानों के संगठन (जिन्हें खास तौर पर मुसलमानों के लिए ही काम करने की वजह से मिलली तंजीम के नाम से जानते हैं) की कमी नहीं है। उनमें कुछ का काम तो केवल कागज़ों पर होता है लेकिन कई संगठन बहुत बड़े हैं और हिंदुस्तान के अधिकांश शहरों में उनके कार्यालय हैं। दिल्ली में भी ऐसे बहुत से संगठन हैं। दक्षिण दिल्ली के जामिया नगर में तो ऐसी तंजीमें हर घर में हैं। भारत के दो चार बड़े संगठनों का मुख्यालय भी जामिया नगर में है। यह संगठन चाहें तो आमिर जैसे लोगों को बड़ी आसानी से अपने यहाँ नौकरी पर रख सकते हैं या फिर उसे कोई व्यवसाय शुरू करने के लिए आर्थिक मदद दे सकते हैं लेकिन इस पंक्ति के लिखे जाने और आमिर से 14 फरवरी को हुई मुलाक़ात तक ऐसा नहीं हुआ था। हद तो यह है मुसलमानों के नाम पर अपनी कई दुकान चलाने वाली इन तंज़ीमों के बड़े लोगों ने अब तक न तो आमिर से मिलकर उसका और उसकी बूढ़ी माँ का हाल जानना गवारा किया और न ही फोन करके उसकी खैरियत ली।

निर्दोष होने के बावजूद 14 साल जेल की परेशानियाँ झेलने के बाद इंसान टूट जाता है। वह भी ऐसा व्यक्ति जिसने जेल में ही अपने पिता को खो दिया हो, जिसकी माँ ब्रेन हेमरेज की शिकार होकर कुछ भी बोलने या करने में असमर्थ हो मगर इसके बावजूद आमिर बहुत हिम्मत रखते हैं और वह नए सिरे से जीवन बिताना चाहते हैं। लेकिन कोई व्यवसाय शुरू करने या फिर कहीं नौकरी के लिए उन्हें जरूरत है आर्थिक मदद की। अपने रिश्तेदारों से उन्होंने पहले भी बहुत कर्ज़ ले रखे हैं जो मुकदमे में खत्म हो गए। आमिर के अनुसार उन्हें मदद के लिए कई फोन आए हैं, कई गैर सरकारी संगठन भी मदद करने को तैयार हैं लेकिन जहां तक मिलली संगठनों का सवाल है तो कुछ संगठनों की ओर से फोन तो आए हैं, लेकिन अभी तक मुझे किसी बड़े संगठन की ओर से कोई वित्तीय मदद नहीं मिली है। इतनी परेशानी के बावजूद आत्माभिमान का शानदार नमूना पेश करते हुए मोहम्मद आमिर कहते हैं मुझे न तो पैसों की लालच है और न ही इन मुस्लिम संगठनों के लिए बुरा सोचता हूँ जिनकी ओर से मुझे कोई मदद नहीं मिली मेरा तो बस यह कहना है कि अब नए और प्रतिष्ठित तरीके से जीवन बिताना चाहता हूँ और इसके लिए मुझे बड़ों की दुआ की जरूरत है। ताज्जुब इस बात का है की निर्दोष मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी और फिर कई वर्षों बाद उनकी रिहाई या अन्य घटनाओं पर उर्दू समाचार पत्रों को प्रेस विज्ञप्ति भेजने में एक दूसरे से आगे निकाल जाने की होड में लगी यह मिलली तंजीमें जब आमिर जैसे युवा की मदद नहीं करेंगी तो आखिर मुसलमानों के नाम पर विदेशों से लाये गए पैसों का किया होगा।

2 टिप्‍पणियां:

SHAHID AZMI ने कहा…

kaisi milli tanzimen janab hamari nam ki ye milli tanzeemen sirf khane kamane ke liye hain . inka jahan fayeda hota muh marte hain.

प्यार की स्टोरी हिंदी में ने कहा…

Nice Love Story Added by You Ever. Read Love Stories and प्यार की कहानियाँ aur bhi bahut kuch.

Thank You For Sharing.