गुरुवार, सितंबर 16, 2010

डील के बाद बाबरी मस्जिद हिंदुओं को सौंप दी जाएगी !


इन दिनों राज्यसभा के सांसद मोहम्मद अदीब और उर्दू अखबार सहाफ़त के रिश्ते कुछ ज्यादा ही खराब हो गए लगते हैं। वैसे तो इन दोनों के रिश्ते पहले भी अच्छे नहीं रहें हैं, मगर इस बार रिश्ते और अधिक खराब होने की वजह सहाफ़त में प्रकाशित एक खबर है। जिसमें कहा गया है कि मोहम्मद अदीब उन कुछ मुसलमान नेताओं में शामिल हैं, जो अंदर-अंदर एक प्लान तैयार कर रहें हैं कि अगर बाबरी मस्जिद का फैसला मुसलमानों के फ़ेवर में आ जाये तो भी विवादित ज़मीन को देश में राष्ट्रीय एकता के लिए हिंदुओं को दे दी जाये। कुछ इस तरह कि लीजिये हम खुशी खुशी यह ज़मीन आपको दे रहें हैं आप वहाँ मंदिर बना लीजिये।

सहाफ़त में 6 सितम्बर को पहले पेज पर इस संबंध में जो खबर छपी है, उसकी सुर्खी कुछ ऐसी है- सोनिया के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को गुमराह करने की साजिशबाबरी मस्जिद की ज़मीन को राम मंदिर के लिए देने की तैयारी तेज़ : सलमाम खुर्शीद और मोहम्मद अदीब पेश : शंकराचार्य और उलेमा संपर्क में। अंदर खबर में जो लिखा है उसके अनुसार सलमान खुर्शीद और मोहम्मद अदीब की अगुआई में एक ऐसा आंदोलन चलाया जा रहा है, जिसके तहत बाबरी मस्जिद की जगह को राम मंदिर के लिए देने पर उलेमा से संपर्क किया जा रहा है। खबर के अनुसार एक प्रमुख सवाल के उत्तर में अदीब ने कहा कि जहां तक बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर को देने का सवाल है, तो इसके लिए मुस्लिम विद्वान, उलेमा और धर्माचार्यों से बात हो रही है।

खबर के छापने के लगभग एक सप्ताह बाद अदीब ने सहाफ़त को नोटिस भेजा है। कारवाई के लिए पुलिस से शिकायत की है और हरजाना भी मांगा हैं। मोहम्मद अदीब ने सहाफ़त की खबर को ग़लत बताते हुए 14 सितम्बर को जो खबर छपवाई है, उसके अनुसार- गत दिनों बाबरी मस्जिद के सिलसिले में मेरा जो बयान सहाफ़त में प्रकाशित हुआ, वो ग़लत और बेबुनयाद है। उनका यह भी कहना है कि इस इशू पर अखबार के किसी रिपोर्टर ने उनसे बात ही नहीं की। अदीब साहब ने यह भी लिखा है कि सहाफ़त अखबार पिछले एक साल से उनके पीछे पड़ा हुआ है और कई बार उन से संबंधित झूठी खबरें प्रकाशित करता रहा है। अदीब साहब के अनुसार अब वो इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अखबार के खिलाफ कार्रवाई करें।
इस खबर के एक दिन बाद सहाफ़त ने पहले पेज पर एक खबर प्रकाशित की। जिसकी सुर्खी है- मोहम्मद अदीब के आरोप पूरी तरह से बे-बुनियाद। अखबार ने खबर में लिखा है कि अदीब से संबंधित जो खबर हमने प्रकाशित की थी वो पूरी तरह से सही है। रही बात अदीब साहब की तो उनको संसद तक पहुंचाने में सहाफ़त ने बड़ी मदद की, इसके बावजूद पता नहीं क्यूँ वो एक साल से अखबार को बदनाम करने में लगे हैं। जहां तक खबर का संबंध है तो बाबरी मस्जिद के सिलसिले में इस तरह की गुपचुप तैयारियों की खबर हिन्दी अखबार नई दुनिया में 27 अगस्त को और लखनऊ के प्रतिदिन में भी छपी है।

अब सवाल यह है कि क्या सही में ऐसी कोई तैयारी चल रही है कि बाबरी मस्जिद का फैसला मुसलमानों के फ़ेवर में आ जाये तो भी विवादित ज़मीन राम मंदिर के लिए हिंदुओं को दे दी जाये। अगर ऐसी कोई तैयारी हो रही है तो फिर इसकी इजाज़त इन दो चार मुसलमानों को किसने दी। क्या हिंदुस्तान के दस-बीस करोड़ मुसलमानों की ज़िम्मेदारी इन्हीं दो-चार मुसलमानों पर है। अगर भारत के लगभग 99.9 प्रतिशत मुसलमानों को इसकी जानकारी नहीं है तो क्या यह कुछ गिने-चुने मुसलमानों का पूरे भारत के मुसलमानों के साथ धोखा नहीं हैं। इसकी भी गारंटी कौन देगा कि यह सब आपसी एकता के लिए हो रहा है या इस सिलसिले में कोई बड़ी डील हो रही है। हर सच्चा मुसलमान और सच्चा भारतीय चाहता है कि देश में एकता बनी रहे और दोनों धर्मों के लोग फालतू के किसी विवाद में न पड़ें। मगर क्या आम मुसलमानों को बताए बिना इस प्रकार की कोई डील करना उचित है। जहां तक अदीब साहब का सवाल है तो अगर उन्हें लगा कि सहाफ़त ने उनसे संबंधित ग़लत खबर छपी है तो उन्होंने इस खबर को ग़लत बताने में इतनी देर क्यूँ की। उन्हें चाहिए की वो इस सिलसिले में पूरे भारत के मुसलमानों को सच्चाई से अवगत कराएं।

रविवार, सितंबर 05, 2010

नाक कटने का डर


जैसे जैसे कॉमन वेल्थ गेम के दिन करीब आते जा रहे हैं वैसे वैसे दिल कि धड़कन यह सोच कर बढती जा रही है कि कहीं सचमुच इसका बेडा ग़र्क न हो जाए और कहीं दुनिया भर में हमारी नाक कट न जाए। आम जनता तो कह ही रही थी अब खिलाडी भी कहने लगे हैं कि हमारे देश को इतने बड़े खेल मेले के आयोजन कि जिम्मदारी नहीं लेनी चाहिए थी। एक तो इसकी तैय्यारी देर से शुरू हुई। दुसरे इसमें बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ और अब रही सही कसार दिल्ली में फैले डेंगू ने पूरी कर दी है। भारत में होने वाली आतंकवादी घटनाओं से चिंतित विदेशी खिलाडी पहले ही भारत में आने से आना कानी करते रहे हैं अब कई खिलाडिओं ने डेंगू कि वजह से दिल्ली नहीं आने का फैसला किया है।
जहाँ तक तैय्यारी का सवाल है तो हर प्रकार कि तैय्यारी में देरी हुई। स्टेडियम देर से तैयार हुए। जिसे तैयार बता कर उसका उदघाटनकर दिया गया उसमें अभी भी कई कमियाँ हैं। जब दिल्ली में ज़ोरदार बारिश होती है तो सड़कों कि हालत तो खराब होती ही है स्टेडियम कि छतें भी टपकने लगती हैं। ताज्जुब कि बात तो यह है कि उन स्टेडियम कि छतें टपक रही हैं जिन्हें वर्ल्ड क्लास का बताया गया है। मीडिया को नसीहत कि जा रही है कि कृपा करके बदनाम करने वाली रिपोर्टिंग न करें मगर जब कमी है तो उसे लिखा कियूं नहीं जाए। झूठी शान कियूं दिखाई जाए। बहुत से लोग तो यह भी कह रहे हैं कि सुरेश कलमाड़ी एंड कंपनी का जो घोटाला सामने आ रहा है फिलहाल उस पर ध्यान नहीं दिया पहले खेल का आयोजन सफलता से होने दिया जाए फिर बात मरीं देखा जायेगा। किया यह संभव है कि कलमाड़ी और उनके चाहीतों को विभिन्न घोटालों के लिए गेम के बाद सजा मिलेगी। आई पी एल के कमिश्नर ललित मोदी पर जब आरोप लगे तो उन्हें फ़ौरन उनके पद से हटा दिया गया और अब उन्हें सजा दिलान्ने कि भी कोशिश हो रही है मगर पता नहीं कियों कलमाड़ी को बचाने वालों कि एक लम्बी लाइन लगी हुई है। मनमोहन सिंह, शीला दीक्षित , एम् एस गिल और कई दुसरे लोगों कि तरह हर भारतीय यही चाहता है कि इन खेलों का आयोजन सही तरह से हो जाये और भारत कि नाक नहीं कटे मगर अब तक जो कुछ देखने में आ रहा है उस से यही लग रहा है कि नाक कटने का डर बना हुआ है।