शुक्रवार, जुलाई 09, 2010

नितीश कुमार का रिपोर्ट कार्ड और असलियत

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के पांचवे वर्ष में राज्य सरकार के क्रियाकलापों को लेकर एक रिपोर्ट कार्ड जारी किया है। जिसमें उन्हीं ने एक तरफ जहाँ यह बताने की कोशिश की है हमने पिछले चार सालों में क्या क्या कमाल क्या है वहीं उन्हों ने उर्दू और सिंस्कृत के टीचरों की नियुक्ति की बात भी काही है। जहाँ तक उनके 112 पृष्ठ के रिपोर्ट कार्ड का सवाल है तो वो यदि यह रिपोर्ट कार्ड नहीं भी जारी करते तो जनता को पता है की वो कुछ अच्छा काम कर रहें हैं मगर सच्चाई यह है की रिपोर्ट कार्ड की पूरी बात सही नहीं है। इस में शक नहीं की नितीश के आने के बाद बिहार की हालत बेहतर हुई है मगर इसका फाइदा सिर्फ उन्हीं लोगों को मिल रहा है जो तेज़ और चालाक हैं और जो नेताओं की चमचागीरी में लगे रहते हैं। इसकी कई मिसालें दी जा सकती हैं। उदाहरण के तौर पर बिहार में ज्यादाह तर गाँव में यह देखा गया है की बी पी एल में अमीरों का नाम है और ग़रीब बेचारे इसका लाभ नहीं ले पा रहें हैं। उसी प्रकार इन्दिरा आवास योजना का लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल रहा है। इन्दिरा आवास के तहत जितनी रकम टाई है उस से 5-10 हज़ार कम रकम मिलती है। बकी की रकम कई लोग रिश्वत के तौर पर लेते हैं। इनमें गाँव के छोटे मोटे दलाल मुखिया और ब्लॉक विकास अधिकारी भी शामिल रहता है.सिक्षा मित्रों को तनख्वाह तो मिल रही है मगर वो पाबंदी से स्कूल नहीं जाते और वो बच्चों को पढ़ाने के योग्य भी नहीं हैं। सिक्षा मित्रों की हालत यह है की उन्हें अपना पैसा लेने के लिए मुखिया को रिश्वत देनी पड़ती है। मुखिया के खिलाफ कोई सिक्षा मित्रा इस लिए नहीं बोलता की उसे पता है की मैं भी तो दूसरे का हक मार कर बे इमानी से टीचर बना हूँ। स्कूलों में चार्ट तो लगा है की फलां दिन फलां खाना बनेगा मगर कई कई दिन तक खाना नहीं बनाता। कुल मिलकर नितीश जी बहुत कुछ बेहतर करने की कोशिश की है मगर अफसरों की बे इमानी से ज़रूरतमंद इसका लाभ नहीं उठा पा रहें हैं। 
जहाँ तक 27 हजार उर्दू शिक्षक, की नियुक्ति का सवाल है तो यह तो नितीश जी ने चुनाओ को देखकर किया है.चुनाओ के कारण ही उन्हों ने कहा की वह चाहते हैं कि प्रत्येक विद्यालय में एक उर्दू शिक्षक हो। कुल मिलकर नितीश काम अच्छा कहा जा सकता है मगर इस से इंकार नहीं किया जा सकता की उनकी जो योजनाएं हैं उसका लाभ सही लोग नहीं उठा पा रहें हैं। जहाँ तक अफसरों की बे इमानी का सवाल है तो वो अब भी उतने ही बे ईमान हैं जीतने लालू प्रसाद के ज़माने में थे.

कोई टिप्पणी नहीं: