सोमवार, नवंबर 08, 2010

नेताओं की जबान पर लगाम जरूरी


बिहार के फतुहा में एक चुनावी सभा में बहुत ही वरिष्‍ठ राजनेताओं में से एक शरद यादव ने एक तो राहुल गांधी की नकल उतारी और फिर उन पर निशाना साधते हुए कहा कि क्या आप जानते हैं, कोई कागज पर लिखता है और आप को दे देता है और आप बस इसे पढ़ देते हैं आप को उठा कर गंगा में फेंक देना चाहिए। लेकिन लोग बीमार हैं। शरद यादव ने यह जो बातें कहीं उसे पूरे देश ने टेलिवीजन पर देखा मगर जैसा कि नेता हमेशा कुछ कहने के बाद मुकर जाते हैं, शरद यादव भी मुकर गए और उसी दिन शाम होते होते कहा उन्हों ने ऐसा कुछ नहीं कहा था और उन्होंने जो कहा था उसका मतलब वह नहीं था जो समाचारों में बताया जा रहा है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि शरद यादव ने राहुल और उनके मां बाप को जो कहा वह तो कहा ही जनता को भी बीमार कह दिया। जी हां उस जनता को जिसके पास वह एक तरह से वोट की भीख ही मांगने गए थे। असलियत यह है कि नेताओं का बस एक ही मकसद होता है अपने विरोधी को नीचा दिखना और अपनी राजनीति चमकाना चाहे इस के लिए किसी भी हद तक क्यों न गिरना पड़े। कुछ ही दिनों पहले की बात है शब्द कुत्ता सुखिर्यों में था। वैसे तो इस शब्द का प्रयोग हर दौर में होता रहा है। हिन्दी फिल्मों में धर्मेन्द्र हमेशा कुत्ते मैं तेरा खून पी जाउंगा कहते आए हैं और लोग एक दूसरे को कुत्ते की मौत मारते आए हैं। मगर कुछ माह पहले कुत्ता का महत्व इस लिए बढ़ गया क्योकि इस बार इसका प्रयोग भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने किया था। लोकसभा में कटौती प्रस्तावों का समर्थन न करने के लिए भारतीय राजनीति के दो बड़े यादवों मुलायम सिंह और लालू प्रसाद पर निशाना साधते हुए गडकरी पार्टी बैठक में कहा था ”बड़े दहाड़ते थे शेर जैसे और कुत्तो के जैसे बनकर सोनिया जी और कांग्रेस के तलवे चाटने लगे।” कहने को तो गडकरी ने ऐसा कह दिया मगर उन्हें बाद में जनता का विरोध देख कर अंदाजा हो गया कि उन्हों ने मुलायम सिंह और लालू प्रसाद जैसे बड़े नेता को ऐसा कह कर एक बड़ी भूल कर दी। जब उन्हें इसका अहसास हुआ तो उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि मैंने सिर्फ एक मुहावरे का इस्तेमाल किया था और किसी को आहत करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। मैं अपने द्वारा की गई टिप्पणी के लिए खेद व्यक्त करता हूं और अपने शब्दों को वापस लेता हूं। मेरे मन में मुलायम सिंह और लालू प्रसाद के लिए अत्यंत सम्मान है। किसी को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ठेस पहुंचाने का मेरा इरादा नहीं था। गडकरी के खेद व्यक्त करने के बाद मुलायम सिंह यादव तो कुछ नर्म पड़ गए थे मगर लालू कहां पीछे रहने वाले थे उन्हों ने कहा था गडकरी कान पकडकर माफी मांगे नहीं तो उनकी पार्टी जन-आंदोलन छेड़ेगी।

यह मामला अभी सुलझा भी नहीं था कि समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह ने ‘कुत्ता प्रकरण’ में कूदते हुए सपा से भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को उनके बयान के लिए माफ करने की अपील के साथ कहा है कि वह भली-भांति जानते हैं कि देश की राजनीति में सचमुच कुत्ता कौन है। अमर ने अपने ब्लाग पर लिखा ”गडकरी के एक बयान पर काफी तूफान मचा हुआ है। बयान पर मचे तूफान के बाद गडकरी की ओर से खेद प्रकट कर देना मामले का अंत कर देने के लिए काफी था। समाजवादी पार्टी आज कल मुद्दा विहीन है, इसलिए चर्चा में बने रहने के लिए गडकरी के खेद प्रकट करने के बाद भी उन्हें कुत्ता कह डाला। ऐसे में सपा में और गडकरी में क्या स्तरीय अंतर रहा। मुझे भली-भांति पता चल गया है कि इस देश की राजनीति में सचमुच कुत्ता कौन है।

अब प्रश्न यह है कि क्या गडकरी, शरद यादव या दूसरे नेता अनजाने में ऐसा गलत कह जाते हैं या फिर यही उनकी असलियत है। सच्चाई यह है कि भारतीय राजनीति में सिर्फ गडकरी ही नहीं ऐसे बहुत से नेता हैं जो आए दिन ऐसे शब्दों का इस्तमाल करते रहते हैं जिन्हें एक सभ्य समाज में किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। मुलायम सिंह और लालू प्रसाद तो आए दिन ऐसा कुछ न कुछ बोलते हैं जिन्हें बहुत बुरा नही ंतो अच्छा भी नहीं कहा जा सकता।

सिर्फ लालू प्रसाद ही नहीं बल्कि ऐसे नेताओं की संख्या कम नहीं है जो आए दिन कुछ न कुछ ऐसी टिप्पणी जरूर करते हैं जिसे शालीन नहीं कहा जा सकता। गत वर्ष उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी और वरूण गांधी को अपने विवादास्पद बयानों के लिए सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ी थी। मायावती के खिलाफ टिप्पणी करके रीता ने अपने लिए मुसीबत बुलाई तो वरूण गांधी ने हिंदुत्व की तरफ बढ़ने वाले हाथ को तोड़ने की बात कहकर आफत मोल ले ली। गत वर्ष पंद्रह जुलाई को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने दुष्कर्म के एक मामले में मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करके बसपा कार्यकरताओं के गुस्से को दावत दे दी। लोकसभा चुनावों के दौरान पीलीभीत से भाजपा के उम्मीदवार वरूण गांधी भी विवादों में घिरे। उन्होंने कथित तौर पर कहा कि हिन्दुत्व की ओर बढ़ने वाला हाथ तोड़ दिया जाएगा। एक बार महिला आरक्षण्ा के संबंध में मुलायम ने कहा कि आरक्षण लागू हो जाने से बड़े बड़े घरों की लड़कियां राजनीति में आएंगी जिन्हें लड़के देख कर सिटी बजाएंगे। कुल मिलाकर नेताओं में किसी को यह मुंह नहीं है कि वह दूसरों को बुरा कहें जिसे जब अवसर मिलता है गाली बोल देते हैं और जब बात बिगड़ती है तो यह कह कर मामला शांत करने की कोशिश करते हैं कि हमारा मकसद किसी का दिल दुखाना नहीं था। पहले जो काम अन्य नेता करते रहे हैं इस बार वह शरद यादव ने किया है। नए और युवा नेता जोश में कुछ गलत बोल जाऐ तो बात समझ में आती है मगर शरद यादव जैसा सीनियर नेता जब जनता को ही बीमार कह दे तो इस से देश में राजनीति के घटते स्तर का अंदाजा होता है।

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