मंगलवार, नवंबर 23, 2010

कैसे साफ होगी खेल संघों में जमी मैल!

दिल्ली हाईकोर्ट ने देश के खेल महासंघों के अहम पदों पर कई सालों से कब्जा जमाए बुजुर्गों को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि सरकार अपनी खेल नीति लागू करे, जिसके तहत किसी भी खेल महासंघ के प्रमुख पदों पर अब 70 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति आसीन नहीं रह सकता। खेल मंत्रालय की अधिसूचना के मुताबिक भारतीय ओलंपिक महासंघ समेत देश के तमाम राष्ट्रीय खेल महासंघों का अध्यक्ष बारह साल से अधिक और अन्य पदों पर बैठा व्यक्ति आठ साल से अधिक समय तक अपने पदों पर नहीं रह सकता। ज्ञात रहे कि राष्ट्रीय खेल संघों के शीर्ष पदाधिकारियों के कार्यकाल की अवधि और बारी तय करने के खेल मंत्रालय के फैसले के बाद यह तय हो गया था कि भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी और उन जैसे कई नेताओं के लिए, जो कई कई सालों से खेल संघों पर कब्जा जमाए हुए हैं, परेशानी खड़ी हो जाएगी। यही हुआ भी।
जब सुरेश कलमाडी, विजय कुमार मल्होत्रा, प्रिय रंजन दास मुंशी, जगदीश टाइटलर, जे एस गहलोत, दिगविजय सिंह, यशवंत सिंह और इन जैसे दुसरे नेताओं, ब्यूरोक्रेट और बिजनेसमैन को यह लगने लगा है कि यदि मंत्रालय अपने मकसद में सफल हो गया तो हमारी दुकान तो बंद हो जाएगी, तो इन लोगों ने आपस में मिलकर इस फैसले का विरोध शुरू कर दिया। खेल मंत्रालय के फैसले से जिस-जिस को नुकसान हो सकता था वह सब आपस में मिल गए, इन सबों की यही कोशिश है कि कुछ भी हो खेल संघों पर कब्जा बनाए रखना है। मगर कोर्ट के फैसले से इन सभी को एक बड़ा झटका लगा है।
खेल संघों पर अपनी अपनी नेतागिरी या दादागिरी बचाने के लिए भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी और राष्ट्रीय खेल संघों के सात पदाधिकारियों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिल कर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की। उस समय प्रधानमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि वे इस मामले पर गौर करेंगे। कलमाड़ी ने साफ किया कि अगर ये खेल मंत्रालय के दिशानिर्देश लागू किये गये तो इसका देश की खेल गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। कलमाडी जैसी सोच उन दूसरे नेताओं की भी है जो विभिन्न राष्ट्रीय खेल संघों पर कब्जा करके खेलों की लुटिया डुबो रहे हैं। सच्चाई यह है कि आज दुनिया में खेलों में हमारी जो खराब हालत है इसके जिम्मेदार यही वह लोग हैं, जिनका खेलों से कभी कोई वास्‍ता नहीं रहा मगर यह विभिन्न राष्ट्रीय खेल संघों से ऐसे चिपके हुए हैं जैसे कि जोंक। इन में से हो सकता है कि किसी को थोड़ा बहुत खेल की जानकारी हो, मगर खेल संघों पर लगी इस जंग को साफ करना जरूरी है। जहां तक खेल मंत्रालय का सवाल है तो मंत्रालय चाहता है कि ये लोग अपना टर्म पूरा होते ही गद्दी छोड़ दें, ताकि संघों के कामकाज में पारदर्शिता आए और देश में खेलों के विकास के लिए काम शुरू हो सके।
इस बात से हर कोई अवगत है कि शीर्ष पदों पर बैठे इनमें से कई अधिकारी अपने रसूख के बल पर खिलाड़ियों के चयन से लेकर संघ के कामकाज में दखलअंदाजी करते रहे हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि उन की मनमानी के कारण ही खेल में भाई-भतीजवाद का सिसिला शुरू हुआ और वास्तविक प्रतिभाएं सामने नहीं आ पाई। पिछले दिनों हॉकी खिलाड़ियों के साथ जो कुछ हुआ वह इसका स्पष्ट उदाहरण है।
एक स्टिंग आपरेशन में भी यह बात सामने आई थी कि खेल अधिकारी खिलाड़ियों को टीम में शामिल करने के लिए उनसे रिश्वत लेते थे। इन बेईमान खेल अधिकारियों की वजह से ही पिछले कुछ सालों में हमने देखा कि हाकी में हमारी हालत कितनी खराब हो गयी। पिछले 80 साल में पहली मर्तबा हमारी हॉकी टीम ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाई तक नहीं कर पाई। अन्य खेलों में भी खिलाड़ियों और खेल संघ के अधिकारीयों के बीच चलने वाली रस्साकशी अक्सर देखने को मिली है। राजनेता, नौकरशाह या बिजनेसमैन जो कहें सच्चाई यह है और जनता भी यही चाहती है कि एक तो राष्ट्रीय खेल संघों में नेताओं को जगह ही नहीं मिले और दूसरे यदि नेता खेल संघों में आ भी जाएं तो यह तय हो कि वह तय सीमा तक ही इस पद पर रहेंगें।
यह मजाक नहीं तो और क्या है कि लालू प्रसाद यादव पिछले नौ सालों से बिहार क्रिकेट एसेसिएशन के अध्यक्ष बने हुए हैं। देश में क्रिकेट में बिहार की हालत आज क्या है वह हर किसी को पता है। पता नहीं विजय कुमार मल्होत्रा को तीरंदाजी कितनी आती है, मगर यह तो शर्मनाक है कि वह भारतीय तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष पद पर 31 सालों से काबिज हैं। फारूक अब्दुल्ला ने तो और भी कमाल किया हुआ है। हमें नहीं पता कि फारूक अब्दुल्लाह को कितनी क्रिकेट आती है, मगर वह 2006 में जम्मू कश्मीर क्रिकेट एसेसिएशन के आजीवन अध्यक्ष निर्वाचित हो गए। अगर देश में खेलों की हालत बेहतर करनी है तो सरकार को अपने फैसले पर कायम रहना होगा, नहीं तो खेलों की दुनिया में हम और भी पीछे चले जाएंगे। अब कोर्ट ने भी सरकार की बात मानी है इसलिए उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हमें खेल संघों में बुजुर्गों को नहीं देखना पड़ेगा।

मैल जिसे साफ करने की जरूरत है

सुरेश कलमाड़ी
कांग्रेस सांसद
उम्र-66 वर्ष
15 साल से भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष
एथलेटिक्स फेडरेशन के मुखिया

प्रियरंजन दास मुंशी
कांग्रेस संसद
उम्र-64 वर्ष
19 साल तक आल इंडिया फुटबाल फेडरेशन के प्रमुख रहे। अब प्रफुल्ल पटेल प्रमुख

अभय सिंह चौटाला
इनलो विद्यायक
उम्र-47 वर्ष
8 साल से भारतीय एमेच्योर बाक्सिंग फेडरेशन के अध्यक्ष

नरेंद्र मोदी
उम्र-59 वर्ष
लगातार तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री
गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष

वीके मल्होत्रा
भजपा विद्यायक
उम्र-79 वर्ष
31 साल से भारतीय तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष पद पर काबिज़

जगदीश टाइटलर
कांग्रेस नेता
उम्र-66 वर्ष
14 साल से जूडो फेडरेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष पद पर कायम

जेएस गहलोत
कांग्रेस नेता
उम्र-65 वर्ष
पिछले 24 साल से भारतीय एमेच्योर कबड्डी संघ के अध्यक्ष

अजय सिंह चौटाला
इनेलो विद्यायक
उम्र-49 वर्ष
पिछले आठ साल से टेबल टेनिस फेडरेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष

यशवंत सिन्हा
उम्र-72 वर्ष
नौ साल से आल इंडिया टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष

सुखबीर सिंह बादल
उम्र-47 वर्ष
मुख्यमंत्री, अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष
पंजाब में कबड्डी और हॉकी संस्था चलाते हैं

एस. एस. ढींढसा
उम्र-74 वर्ष
शिरोमणि अकाली दल के सांसद
14 सालों तक भारतीय साइकिलिंग संघ के मुखिया रहे

शरद पवार
उम्र-69 वर्ष
राकांपा के संस्थापक और मुखिया
2005 से 2008 तक बीसीसीआई आध्यक्ष, अब आईसीसी के अध्यक्ष

अरुण जेटली
उम्र-57 वर्ष
भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री
दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष और बीसीसीआई के उपाध्यक्ष

लालू प्रसाद यादव
उम्र-62 वर्ष
राजद प्रमुख व सांसद, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री
पिछले नौ साल से बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष

फारुख अब्दुल्ला
उम्र-72 वर्ष
केंद्रीय मंत्री व जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री
2006 में जम्मू कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के आजीवन अध्यक्ष निर्वाचित

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