सोमवार, जनवरी 10, 2011

दिल्ली से एक और उर्दू अखबार


भारत में उर्दू के समाचारपत्रों की हालत कभी भी अच्छी नहीं रही। इस के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों खास तौर पर दिल्ली से उर्दू अखबारों के निकलने का सिलसिला हर दौर में जारी रहा। अखबार निकलते रहे और साल दो साल या फिर चार साल के बाद बंद होते रहे। हाल ही में दिल्ली से उर्दू का एक और अखबार जदीद मेल के नाम से निकला है। वैसे तो शुक्रवार को यह अखबार पहली बार मार्केट में आया मगर उस पर अंक नंबर 61 लिखा हुआ है। इसके चीफ एडिटर जाने माने पत्रकार जफर आग़ा हैं जबकि एडिटर हाजी अब्दुल मालिक है जो इस अखबार के मालिक भी हैं। अखबार के प्रिंटर और पब्लिशर आली हैदर रिजवी हैं। रिजवी पहले सहाफ़त अखबार में थे। किसी विवाद के बाद रिजवी सहाफ़त से अलग हो गए और उनहों ने एक दूसरा अखबार उर्दू नेट निकाला। बाद में कुछ ही दिनों चलने के बाद उर्दू नेट भी बंद हो गया। उर्दू का यह नया अखबार कितने दिन चलेगा यह तो एक अलग सवाल है मगर एक मुख्य प्रश्न यह है की जब राष्ट्रीय सहारा के अलावा दिल्ली से निकालने वाले उर्दू के सभी अखबार आर्थिक तंगी की वजह से रोते रहते हैं, किसी ने खर्च में कमी लाने की नियत से दिल्ली से बाहर अखबार भेजना बंद कर दिया है तो कोई अखबार बेचने के लिए खरीदार तलाश रहा है। ऐसे में एक नए उर्दू अखबार की शुरूआत बड़े आश्चर्य की बात है।
उर्दू अखबार के साथ एक बड़ा मसला यह है की उन्हें विज्ञापन बहुत कम मिलते हैं। कम सर्कुलेशन की वजह से प्राइवेट विज्ञापन तो मुश्किल से मिलता ही है अब डी ए वी पी के विज्ञापन में कमी के कारण भी उर्दू अखबार की हालत खराब हो गयी है। पिछले दिनों जब उर्दू वालों को डी ए वी पी के विज्ञापन बहुत कम मिलने लगे तो उर्दू अखबार के मालिक और संपादकों ने इस समस्या को लेकर कई नेताओं समेत प्रधान मंत्री से भी मुलाकात की। उन्हें उनकी समस्याओं के हल का आश्वासन भी दिया गया मगर अब तक यह समस्या हल नहीं हुई है। लगभग एक साल बीत चुके है तब से लेकर अब तक उर्दू वालों का नेताओं और अफसरों से मिलने का सिलसिला जारी है। इस सिलसिले में एक बात यह देखने में आ रही है की अपनी आदत के अनुसार उर्दू का हर अखबार एक दूसरे की काट करने में लगा है। हर संपादक या मालिक की यही कोशिश है की नेता से उसकी पहचान ज़्यादा बने और अगर सरकार उर्दू अखबार के लिए कुछ खास ऐलान करे तो उसका लाभ उसे हो। फिलहाल दिल्ली से 47 उर्दू के ऐसे अखबार प्रकाशित हो रहें हैं जिनको डी ए वी पी से विज्ञापन मिलता है। इन 47 में से अधिकतर ऐसे है जो सिर्फ उसी दिन प्रक्षित होते हैं जिस दिन उनको विज्ञापन मिलता है उसके अलावा यह अखबार कहाँ से प्रकाशित होते हैं और कहाँ जाते है यह किसी को पता नहीं है। दिल्ली में फिलहाल मार्केट में उर्दू के जो अखबार नज़र आते है वो हैं राष्ट्रीय सहारा, हिंदुस्तान एक्सप्रेस, सहाफ़त और हमारा समाज। इन के अलावा जो अखबार निकलते वो सिर्फ सरकारी दफ्तरों में जाते हैं। इनमें कॉर्पोरेट का अखबार होने की वजह से सिर्फ सहारा ही ऐसा है जिसकी आर्थिक हालत अच्छी है बाक़ी के अखबार जैसे तैसे कर के चल रहें हैं। जिस अखबार के मालिक तेज़ और चालाक हैं वो तो कहीं न कहीं से अखबार चलाने के लिए पैसा निकाल ही लेते हैं जिनको यह फन नहीं आता वो अपनी हिम्मत से अखबार निकाल तो रहें है मगर कब तक निकलते रहेंगे यह कहना मुश्किल है। उर्दू अखबारों की आर्थिक तंगी के बावजूद एक नए अखबार ने दिल्ली में दस्तक दी ह। अखबार के मालिक ने ऐसी हिम्मत कैसे कर ली और यह अखबार कितने दिनों तक चलेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

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